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मेघमहोदये जनानां बहुलाः क्लेशा राजा दुःखैः प्रपोज्यते। अमावस्यादिने सूर्यः सन्तापायार्थनाशनात् ॥१७१॥ सुभिक्षं क्षेममारोग्यं वर्षायाः प्रबलोदयः । . सस्योत्पत्तिः प्रजासौख्यं सोमवारे प्रवर्तते ॥१७२॥ राज्यभ्रंशो राज्ययुद्धं क्लेशानां च प्रवर्द्धनम् । उपघातोऽल्पवृष्टिश्च क्षयश्चार्थस्य भूमिजे ॥१७॥ दुर्भिक्षं राज्यनाशश्च प्रजानां दुःखभाजनम् । . स्थानत्यागो धान्यमल्पं बुधवारे प्रवर्तते ॥१७॥ सदा वृष्टिः सुभिक्षं च कल्याणं दुःखनाशनम् । आरोग्यं च प्रजा स्वस्था गुरुवारे समादिशेत् ॥१७॥ भृशं जलोशता मेघाः कृषीणां बहुरुद्भवः॥ तस्करोपद्रवा नित्यं शुक्रणामावसीदिने ॥१७६॥ . दुर्भिक्षं रौरवं घोरं महादुःखं महद्भयम् । पराङ्मुखाः पितुः पुत्रा व्यसनं शनिवासरे" ॥१७॥ वर्षमें मासका काल जाना जाता है ॥१७०॥ अमावसको रविवार हो तो मनुष्यों को बहुत क्लेश तथा राजा दुःखोंसे पीडित हो और अर्थका विनाश हो ॥ १७१ ॥ सोमवार हो तो सुभिक्ष, कुशलता, आरोग्य, वर्षाका प्रबल उदय, धान्यकी उत्पत्ति और प्रजा सुखी हो ॥ १७२ ॥ मंगलवार हो सो राज्यका विनाश, राजाओं में युद्ध, क्लेशोंकीवृद्धि, उत्पात, थोड़ी वर्षा और धन का नाश हो ॥१७३॥ बुधवार हो तो दुर्भिक्ष, राज्यका विनाश, प्रजा को दुःख, स्थान भ्रष्ट और धान्य थोड़ाहो ॥१७४॥ गुरुवार हो तो अच्छी वर्षा, सुभिक्ष, कल्याण, दुःखका नाश, प्रजा सुखी और आरोग्यता हो । १७५॥ शुक्रवार हो तो जलसे उन्नत मेघ हो, कृषियों का बहुत उदय हो
और चोरका हमेशा उपद्रव हो ॥१७६॥ शनिवार हो तो घोर दुर्भिक्ष हो, महादुःख, बडाभय और पुत्र पिता से पराङ्मुख हो ॥१७७॥ अमावास्या
"Aho Shrutgyanam"