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मेघमहोदये
आश्विनस्याप्यमावस्यां शनिवारो यदा भवेत् । मध्यम वरमथवा दुष्कालः खण्डमगडले ॥१९६।। क'च तु-सनि आइच्चे मंगले, आसू अमावसि होय । बिमग तिगुगा च उगुणा, कणे कवड्डा होय ॥१९॥ ग्रन्थ म्तरे
उत्तरतिन्नि धगिट्ट चउत्थी, अने पुनर्वसु रोहिणी छट्ठी। हुइ अमावसि एह संजुती, मास दुभिक्ख करे निरुती।१६८
इति सामान्यवचोऽपि आश्विनविषयमुक्तम् । अथ कात्तिकमास:कार्तिके प्रयमे पक्षे प्रथमा बुधसंयुता । तद्वर्षे मध्यमं वृष्टया-नावृष्टया च कचिद्भवेत् ॥१६॥ यतः-काती सुदि पक्षिका दिने, जो बुधवारि होय । आश्विन अमावस को शनिवार हो तो खण्डमंडल में वर्ष मध्यम, या दुष्काल हो ॥ १६६ [[ कोई कहते है कि- आश्विन अमावस को शनि वि या मंगलवार हो ही धान्यका दूना तीगुना और चौगुना लाभ हो । ॥१६७।। ग्रन्थन्तर-- आश्विन अमावसको तीनों उत्तरा, धनिष्ठा, पुनर्वसु या रोहिणी नक्षत्र हो तो एक मास दुर्भिक्ष हो।।१६८॥ इति आश्विनमास।। - कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को बुधवार हो तो कहीं वर्षा और कहीं अनावृष्टि के कारण वर्ष मध्यम फलदायक हो ॥ १६ ॥ जैसे- कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को बुधवार हो तो धान्यका दूना तीगुना और चौगुना भाव हो
टी-शुक्लादिपक्षे सम्भवति। टी- संवत् १७४३ वर्षे कार्तिककृष्ण १ तिथौ बुधः कृष्णादिमते।
टी-संवत् १६८७ वर्षे ज्येष्ठ कृष्ण १ तिथौशनौ, कार्तिककृष्ण १दिने मंगलः,पतदिन येरवारे दुर्लक्ष । टी-कालीमास अंधार पख, पडिवाये शनिवार । ए बिहुँ दुःखकारीया, जाणो रौरवकार ॥
"Aho Shrutgyanam"