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(३७६)
. मेघमहोदय
मार्गे नवम्यां रेवत्यां बुधो दुर्भिक्षकारकः । पञ्चमी गुरुणा योगात् पञ्चमासान् सुभिक्षदा ॥२१९|| मार्गशीर्षप्रतिपदि पुष्ये शुष्येच्चतुष्पदः । जलवृष्टया परं वर्ष गर्भस्रावाद विनश्यति ॥२२०॥ पुनर्वस्वोस्तथााया-स्तृतीयायां च सङ्गमे । धान्यं समर्घमादेश्यं राजा सुस्थः प्रजासुखम् ॥२२१॥ मार्गशीर्षस्य पञ्चम्यां मघाद्यं पञ्चकं यदा । पुरो वर्षविनाशाय जायते जलरोधतः ॥२२२॥ मार्गे नवम्यां चित्रायां धान्यं महर्घमादिशेत । *कृष्णा चतुर्दशी स्वातौ श्रावणे जलरोधिनी ॥२२३॥ मार्गशीर्षस्य दशमी मूले वा रविणा युता। सङ्गाह्याश्च तिलास्तलं ज्येष्ठान्ते लाभदायकम् ॥२२४॥ मार्गे यदि स्यादादित्य एकादश्यां तिथौ तदा । नवमी को रेवती नक्षत्र और बुधवार हो तो दुर्भिक्षकारक है । पंचमी को गुरुवार हो तो पांच मास सुभिक्ष हों ।। २१६ ॥ मार्गशीर प्रतिपदा को पुष्य नक्षत्र हो तो पशुओं को कष्ट हो और अगला वर्ष का गर्भ जल वृष्टि से विनाश हो || २२० ॥ तृतीया को पुनर्वसु तथा आर्द्रा नक्षत्र हो तो धान्य सस्ते, राजा प्रसन्न रहे, और प्रजा सुखी हो ॥ २२१ ॥ मार्गशीर्ष पंचमी को मघा आदि पांच नक्षत्र हो तो वर्षा न होनेसे अगला वर्ष विनाश हो ॥ २२२ ॥ मार्गशीर नवमीको चित्रा नक्षत्र हो तो धान्य महेंगे हो और कृष्ण चतुर्दशी स्वाति युक्त हो तो श्रावण में वर्षा न हो ॥ २२३ ॥ मार्गशीर्ष दशमीको मूलनक्षत्र और रविवार हो तो तिल तैल का संग्रह करना ज्येष्ठके अंतमें लाभदायक है ।।२२४॥ मार्गशीर एकादशी
* टी-मागसिरि चादीस अंधारी स्वातिभोगहुई जोउविचारी। श्रावण ता जो प्रतिघण करइ, जाओ विदेस के सहुये मरइ ॥२॥ संवत् १७४३ वर्षे चतुर्दश्यां स्वातिभोग्यः।
"Aho Shrutgyanam"