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तिथिफलकथनम्
(३६३)
सुभिक्षमेकादशके वारुणाये पुरोहितम् ॥१४॥ अमावस्यां मध्यवर्ष भवेत् पुष्यचतुष्टये। शनिः सूर्यः कुजो दर्श-ब्वनन्तरमरिष्टकृत् ॥१४२॥ तिमि य पूरव कत्तिका, चित्ता अरु असलेस। मिलि अमावसि धानरो, अरघ करे सविसेस ॥१४॥ अमावस्यातिथिर्धिष्ण्यं यदा भवति कृत्तिका । ईतिर्घमा क्षितौ नूनं वर्षे तत्र भविष्यति ॥१४४॥ पार्वणी यदि रौद्रे स्या-दादित्यं प्रतिपत्तिथौ । द्वितीया पुष्यसंयुक्ता जलं धान्यं तृणं न च ॥१४॥ अमावस्यादिने योगे पुनर्वस्वादिपञ्चके । समर्घमथ दुर्भिक्ष-मुत्तरादिचतुष्टये ॥१४६।। विशाखाद्यष्टके कष्टं वारुणादौ जने सुखम् ।
ऊचिरे केचनाचार्या दर्शनक्षत्र फलम् ॥१४७॥ विशाखा आदि आठ नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो तो बहुत करके दुर्भिक्ष हो
और शतभिषा आदि ग्यारह नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो तो शुभ हो ।।१४१॥ यदि अमावसके दिन पुष्य प्रादि चार नक्षत्र हो तो मध्यम वर्ष हो। और शनि रवि या मंगलवार के दिन अमावस हो तो निरंतर दुःखदायक हो । १४२॥ यदि अमावसको तीनों पूर्वा, कृत्तिका, चित्रा या आश्लेषा नक्षत्र होतो धान्य महँगे हो ॥१४३॥ यदि आमावसके दिन कृत्तिका नक्षत्र हो तो पृथ्वी पर निश्चयसे उस वर्ष में ईति का उपद्रव हो ॥ १४४ ।। यदि अमावस को आर्दा, प्रतिपदा को पुनर्वसु और द्वितीया को पुष्य नक्षत्र हो तो वर्षा, तृण और धान्य न हो ॥ १४५ ॥ अमावस को पुनर्वसु आदि पांच नक्षत्र हो तो धान्य सस्ते हों, उत्तराफाल्गुनी आदि चार नक्षत्र हो तो दुर्भिक्ष हो ॥ १४६ ॥ विशाखा आदि आठ नक्षत्र हो तो कष्टदायक हो और शतभिषा आदि नक्षत्र हो तो मनुष्यों में सुख हो एसा अमावस
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