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तिथिफलकथनम् श्रावणेऽपि तथा वाच्यं प्राच्याः केचिदिहोचिरे ॥१५३।। अथ भाद्रपदमास:प्रथमायां तिथौ भाद्र गुरौ श्रवणसंयुते । प्रमों जायते वर्षे धनधान्यादि सम्पदा ॥१५४॥ भाद्रपदाऽसिताष्टम्यां रोहिणी शुभदायिनी । मवमी भाद्रशुक्लस्य रवौ मूले भयङ्करी ॥१५॥ दुर्भिक्षाय रवी मूले भाद्रे शुषले दशम्यपि । योग्योऽयं स्यात सुभिक्षाय प्रोचुरेवं च केचन ॥१५६॥ एकादशी भाद्रशुक्ले मूले दिनकृता युता । मेवेन वत्सरे सौख्यं लोकं व्याधिर्वियाधते ॥१५७॥ भाद्र कृष्णद्वितीयायां वितीयवारयोगतः । धान्यनिष्पत्तिरतुला सम्पदः स्युश्चतुष्पदैः ॥१५॥ शनी भाद्रपदे कृष्णा चतुर्थी यदि जायते । देशभङ्गश्च दुर्भिक्षं मुस्तयोदरपूरणम् ॥१५॥ चाहिए ॥१५३ ॥ इति श्रावणमास। . भादपद की प्रथम तिथि के दिन गुरुवार और श्रवण नक्षत्र हो तो वर्ष अच्छा हो और धन धान्य की प्राप्ति विशेष हो। १५४ ॥ भाद्रकृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र हो तो शुभदायक है। भाद्रशुक्ल नवमी को रवि वार और मूलनक्षत्र हो तो भयदायक है ॥ १५५॥ भाद्रशुक्ल दशमी को रविवार और भूलनक्षत्र हो तो दुर्भिक्ष होता है। परन्तु यही योग को कोई सुभिक्ष कारक कहते हैं ॥ १५६ ॥ भाद्रशुक्ल एकादशी को रविवार और मूलनक्षत्र हो तो वर्ष में वर्षासे तो सुख हो परंतु रोग का उपद्रव हो॥ १५७॥ भाद्रकृष्ण दूजको सोमवार हो तो धान्यकी प्राप्ति बहुत हो तथा पशुओंकी वृद्धि हो ॥१५८॥ भाद्रकृष्ण चतुर्थी को यदि शनिवार हो तो देशभंग और दुर्भिक्ष होने से लोक मुस्ता (मोथा) से उदरपूर्ति करें ॥ १५६ ॥
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