________________
तिथिफलकथनम् छन्त्रमा विजानीया-दाश्विनान्ते न संशयः ॥१२९॥ दशम्यां श्रावणे सिंहे रविः संक्रमते शनौ । मही न दीना जलदै-रनन्ता धान्यसम्पदः ॥१३०॥ कृत्तिका श्रावणे कृष्ण-कादश्यां + मध्यमा समा।
मुभिक्षं रोहिणी कुर्याद् दुर्भिक्षं मृगशीर्षतः ॥१३१॥ यदुतं लोके-सावण बहुल इगारसी, जो रोहिणीया होय घणु वरससे बदली, पासासइ जिय लोय ॥१३२॥ जह पुण आवे यारसे, तो मज्भट्ठो काल । . अहवा आवे तेरसी, तो रौरवदुकालः॥१३३॥
इति कृष्णादिमासमते कालीरोहिणी। श्रावणे शुक्लपक्षे चेद् यदा कश्चित् तिथिक्षयः । तदा कार्तिकमासे स्थाच्छन्नभङ्गोऽपि निश्चयात् ॥१३४॥ करे, आश्विनमासके अंतमें छत्रभंग हो || १२६ ॥ श्रावणमास में दशमी शनिवार के दिन सिंहसंक्रांति हो तो पृथ्वी मेघों से दुःखी न हो याने पूर्ण वर्षा हो और धान्य संपत्ति बहुत अच्छी हो ॥ १३० ॥ श्रावण कृष्ण एकादशी के दिन कृत्तिका नक्षत्र हो तो मध्यम वर्ष हो; रोहिणी हो तो सुभिक्ष करे और मृगशिर हो तो दुर्भिक्ष करे ॥१३१॥ लोक में भी कहा है कि- श्रावया कृया एकादशी को रोहिणी हो तो वर्षा अच्छी हो और लोक सुखी हों ॥१३२॥ यदि बारसके दिन रोहिणी भा जाय तो मध्यम काल और तेरसके दिन आ जाय तो दुष्काल हो ॥१३३॥ यदि श्रावण शुक्ल पक्षमें कोई तिथिका क्षय होतो कात्तिकमासमें निश्चयसे छत्रभंग हो ॥१३॥
+टी-श्रावण किसन एकादशी,तीन नक्खतलंत कृत्तिकातो करवरो, रोहिणी घणं सुखदंत ॥१॥ इगियारसि मिगसिर हुइ, तो प्रणधित्यो काल | काली रोहिणी टीप्पणे, जोसी फल भाल ॥२॥ __x संवत् १७४३ वर्ष राखडीपूर्णाक्षयस्तेन कार्तिके विद्यापुरदुर्गम
इदं कदाचिदेव संभवति शुक्लपक्षे कदाचिन संभवत्यपि।
"Aho Shrutgyanam"