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तिथिफलकथनम्
मृगादिपञ्चके राका धान्ये महतां वदेत् । मघाचतुष्टये पूर्णा कुर्याद्धान्यसमर्घताम् ॥ ११८ ॥ राका चित्राष्टके युक्ता दुभिक्षात् कष्टकारिणी । श्रवणाद्रोहिणी यावनक्षत्रैः पूर्णिमा शुभा ॥ ११९॥ क्वचित्तु तुल्यार्थ पूर्णिमायां स्यान्मृगादिधिष्ण्यपश्च । मघाचतुष्के दुर्भिक्षं कष्टं चित्रादिकेऽष्टके ॥ १२०॥ कर्णादिदशके पूर्णा सुभिक्षसुखकारिणी । सोमवारेण संयोगे कुर्यादिग्रहबर्द्धनम् ॥१२१॥ तिथिकुलके विशेष:
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तिथ उत्तरा य अद्द पुण्व्वस्त्र रोहिणी य जइ कहवि । हुति किर पुण्णिमाए तम्मासे जाण दुष्क्खं ॥ १२२॥ ग्रन्थान्तरे - आदचतुष्टये सूर्य-वारे पूर्णार्थनाशिनी ।
मृगशिर आदि पांच नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो तो धान्य महँगे हों । और मया आदि चार नक्षत्रों में से कोई एक नक्षत्र हो तो सस्ते हों ॥ ११८ ॥ पूर्णिमाके दिन चित्रा आदि आठ नक्षत्रोंमेंसे कोई नक्षत्र हो तो दुर्भिक्ष तथा कष्टदायक हो । यदि श्रवणसे रोहिणी तक के नक्षत्र हो तो पूर्णिमा शुभदायक हो ॥ ११६ ॥ कोई कहते है कि- पूर्णिमा को मृगशिर आदि पांच नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो तो समान भाव रहे। मवादि चार नक्षत्र हो तो दुर्भिक्ष, चित्रादि आठ नक्षत्र हो तो कष्ट हो ॥ १२० ॥ श्रश्रवणादि दश नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो तो सुभिक्ष तथा सुखकारक हो, परंतु सोमवार का योग हो तो विग्रहकारक हो ॥ १२१ ॥ तिथिकुलक में इतना विशेष है वि.- पूर्णिमाके दिन तीनों उत्तरा, आर्द्रा, पुनर्वसु या रोहिणीनक्षत्र हो तो उस मासमें धान्य महँगे हों ॥ १२२॥ अन्य ग्रंथ में- पूर्णिमा के दिन रविवार हो और आर्द्रा आदि चार नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो तो अर्थका (लक्ष्मीका) नाश हो । यदि सोमवार हो और मवादि चार नक्षत्रों में से कोई नक्षत्र हो तो
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