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मेघमहोदये
रटन्ति वहि दिशि वा शिवा शब्दोऽपि दृष्टिकृत् ॥ १०८ ॥ यदा भाद्रपदे मासे प्रतिपदशमी तथा । सप्तमी पूर्णिमा चैव नवमी च यथाक्रमम् ॥ १०६ ॥ मेघा यदा न दृश्यन्ते पश्चिमां दिशिमाश्रिता । तावद्वर्षन्ति सततं बहुनीराः पयोधराः ॥११०॥ सन्ध्याकाले च ये मेघाः पर्वताकारसन्निभाः । - यादित्यास्तंगते तर्हि चाहोरात्रं प्रवर्षति ॥ १११ ॥ सूर्यास्तगमने व्योम श्रावणे रक्तिमान्विताम् ।
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काश दीखे, रास्तामें बालक धूल आदिक बुल याने बांध बंधि ॥ १०७॥ पिपीलिका(चींटी)अण्डाको छोड़े, घरमें कुत्ते ऊंचे सुख करें देखें, श्रृंगाल दिन या रात्रिमें शब्द करे, इत्यादि इन निमित्तों से शीघ्ररी वर्षा होना समझना चाहिये ॥ १०८ ॥ यदि भाद्रपदमास में प्रतिपदा दशमी सप्तमी पूरियमा और नवमी इन तिथियों में अनुक्रमसे पश्चिम दिशामें रहे हुए बादल न दीखें सो नीरंतर मेघ बहुत जल बरसावे ॥ १०६ ११० ॥ सूर्यस्ति में सन्ध्याकाल' के समय पर्वत के आकार सदृश बादल दीखे तो दिनरात वर्षा हो ॥ १११ ॥ श्रावणमासमें सूर्यास्त के समय आकाश लालवर्ण वाला दीखे तबतक वर्षा ब
* माणिक्यसूरिकृत शाकुनसारोद्धार में भी कहा है किनीरतीयें तटस्थचे व कम्पयते शुनिः । तत्र देशे घनां मेघ वृष्टिं वदति भाविनीम् ॥ १ ॥ चन्द्रार्कौ प्रेक्ष्य वर्षातु रोत्यूर्ध्ववदनों यदि । सप्तरात्रा वारिपुरं पतित्र्यति वदन्यदः ॥ २ ॥ प्रसार्य वक्त्रमाकाशे जृम्भां कुर्वन् निरीक्षते । जलपाती भवत्याशु प्रचुरो ध्यानया ॥ ३ ॥
जलाश्रय तीर्थ के तट पर रहा हुआ कुत्ता मंगको कंपावे तो उस देशमें भी मेघवर्षा का सूचन करता है ॥ १ ॥ वर्षा कालम कुत्ता चन्द्र सूर्य को देखकर ऊँचा मुखकर रोने लगे तो सात रात्रि के बाद बहुत वर्षा होगी ऐसी सूचना करता है ॥ २॥ तथा मुखको माकाशमें पसार कर उबासी करता हुआ देखे तो इस चेासे शीघ्रही बहुत जलवर्षा हो । ३॥
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