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मेघमहोदये घौरा लुण्ठन्ति मार्गेषु राज्ञां युद्धं परस्परम् ॥६॥ तृतीयायामक्षयायां रोहिगी गुरुणा सह ।
सर्वधान्यस्य निष्पत्ति वि महालकर्म च ॥१२॥ अथ ज्येष्ठमास:--- ज्येष्ठस्य प्रथमे पक्षे या तिथिः प्रथमा भवेत् । प्रागता केन वारेण तामन्वेषय. यत्नतः ॥६॥ * भानुना पवनो वाति कुजो व्याधिकरो मतः। सोमपुत्रेण दुर्भिक्षं खण्डवृष्टिः प्रजायते ॥६४॥ गुरुभार्गवसोमाना-मेकोऽपि यदि जायते । वर्षावधि तदा पृथ्वी धनधान्यसमाकुला ॥६॥ अथवा दैवयोगेन शनिवारो भवेद् यदि। जलशोषं प्रजानाशं छत्रभङ्ग विनिर्दिशेत् ॥६॥ ज्येष्ठशुक्लतृतीयायां द्वितीयायां प्रजायते । नक्षत्रमार्दा तदृष्टौ महा दुर्भिक्षकारणम् ॥७॥ रोगसे लोक दुःख, कृत्तिका हो तो जल वर्षा थोड़ी, मार्गमें चोर लूटे और राजाओं में परस्पर युद्ध हो ॥६१॥ अक्षय तृतीया के दिन गुरुवार और रोहिणी नक्षत्र हो तो पृथ्वी पर सब प्रकार के धान्य की प्राप्ति हो और मंगल हो ॥६ ॥ - ज्येष्ठमासके प्रथम पक्ष में जो तिथि प्रथम हो वह कौनसे वार की है उसका विचार करना ॥६३ ॥ यदि रविवार की हो तो पवन अधिक चलें, मंगलवार की हो तो व्याधि करे, बुधवार की हो तो दुर्भिक्ष और खंडवर्षा हो ।। ६४ ॥ गुरु शुक्र या सोमवार की हो तो एक वर्ष तक पृथ्वी धन धान्यसे पूर्ण हो ॥६५॥ यदि दैवयोगसे शनिवार की हो तोजलका शोष, प्रजाका नाश, और छत्रभंग हो ॥६६ ॥ येष्ठशुक्ल द्वितीया और तृतीया आर्द्रा नक्षत्र से * टी- भानुना कृषिनाशः स्यादित्यपि पाठः ।
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