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तिथिफलकथनम्
(३५४)
ता दुन्न वि मासाओ दुभिक्खं उवरि सुभिक्खं ॥११॥ अह उपरि बे पुहरा पुवासाना हविज नक्खतं । ता होइ दुण्णि मासा खेमसुभिक्खं वियाणाहि ॥२॥ अहव पविसिऊण मूलं भुंजह बत्तारि पुहर जइ कहवि। ता थत्तारि विमासा दुभिक्खं होइ रसहाणि ॥६॥ अहवा उत्तरसादा भुंजह बत्तारि पुहरमवियारं । ता जाणह दुकालं मासा उत्तरह चत्तारि ॥४॥ अह भुंजह बे पुहरा पुवाउड्डम्मि उत्तरासादा। ता उवरिं बे मासा होह सुभिक्खायो रसहाणि ॥६५॥ अह भुंजह बे पुहरा मुलं पुव्वं हविज नक्खतं । उरि पुठवासादा दुक्खं पच्छा सुहं होइ ॥६६॥ एवमर्घकाण्डेऽप्युक्तम्आषात्यां पूर्वाषाढाभं वर्ष यावच्छभं करम् । आवर्ष धान्यनिष्पत्तिः प्रजासौख्यमविग्रहात् ॥१७॥ मूलोत्तरे चाईधिष्ण्ये फलमध्यविधायिके । दो मास दुर्भिक्ष रहें बाद सुभिक्ष हो ॥६॥ अथवा पूर्वाषाढा नक्षत्र उपर के दो प्रहर हो तो दो मास सुभिक्ष और मंगलिक हो ॥१२॥ यदि चारों ही प्रहर मूलनक्षत्र हो तो चारों ही मास दुर्भिक्ष हो और रसकी हानि हो ॥६३॥ अथवा पीछेके चारों ही प्रहर उत्तराषाढानक्षत्र हो तो पीछले चार मास दुष्काल जानना ॥ ६४ ।। यदि दो प्रहर पूर्वाषाढा हो और बाद में उत्तराषाढा नक्षत्र हो तो पहले दो मास सुभिक्ष हो और रसकी हानि हो ॥६५॥ यदि पहले दो प्रहर मूलनक्षत्र हो और बाद में पूर्वाषाढा नक्षत्र हो तो पहले दुःख और पीछे सुख हो ॥ १६ ॥ आषाढ पूर्णिमा के दिन पूर्वाषाढा नक्षत्र पूर्ण हो तो एक वर्ष तक शुभ हो, धन्य की निष्पति और प्रजा शान्ति पूर्वक सुखी हो ॥६७ ॥ प्राधा मूलनक्षत्र और माधा पूर्वा
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