________________
तिथिफलकथनम्
(३५३) प्राषाढषष्ठीदिवसे कृष्णपक्षे शनिर्यदा। तदा गोधूमका प्राथा द्विगुणा यस्तु कार्तिके ॥७॥ आषाढे शनिरेवत्यामष्टम्यां सङ्गमो यदा । तदा घृष्टिनिरोधेन कष्टमुत्कृष्टमादिशेत् ॥८॥ देवसूखी इगारसइ, जे वारि हुइ भीड । सनि मूसो रवि कातरो, मंगल भणीइ तीड ॥८॥ कचित्-"धान्यं महर्घ दुर्भिक्षं च'' सोमे शुके सुरगुरुइ, जो पोढे, सुरराय । अन्न बटुल तो नीपजे, पृथिवी नीर न माय ॥२॥ सनि आइचह मंगले, जो सूचइ सुरराय । तीहे मुंसे कत्तरे, संतापिजे भाय ॥८॥ प्राषाढे कर्कसंक्रान्तौ शनिवारो यदा भवेत् । तदा दुर्भिक्षमादेश्यं धान्यस्यापि महर्घता ॥८४॥ चतुर्दश्यां तथाषाढे सोमवारप्रवर्तनात् ।। न धान्यं न तृणं लोके किं गवादेः प्रयोजनम् ॥८॥ करनेसे कार्तिकमें दूने मूल्यसे बिकें ॥७६॥ आषाढमें अष्टमी शनिवारको रेवतीनक्षत्र हो तो वर्षा न हो और बड़ा कष्ट हो ॥८० ॥ आषाढ शुक्ल एकादशीको शनिवार हो तो मूंसेका, रविवार हो तो कातराका और मंगलवार हो तो टीड्डी का उपद्रव हो। कोई कहते है कि धान्य महँगे हों और दुर्भिक्ष हो ॥८१॥ सोम शुक्र या बृहस्पति वारके दिन देव पोदे याने इन वारों को शुक्ल एकादशी हो तो अन बहुत उत्पन्न हो और पृथ्वी जल से तृप्त हो ॥८२॥ यदि शनि रवि या मंगलबारको देव पोढ़े तो टीड्डी, मूसे
और कातरा इनका उपद्रव हो ॥८३॥ आषाढ मासमें कर्कसंक्रान्तिके दिन शनिवार हो तो दुर्भिक्ष हो और धान्य महँगे हो ॥ ८४ ॥ आषाढ में अतुर्दशी के दिन सोमवार को तो लोकमें धान्य और तृण उत्पन्न न हो,
"Aho Shrutgyanam"