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मेघमहोदये
आषाढे प्रथमे पक्षे द्वितीयानवमी तिथौ । गुर्विन्दुशुकवाराः स्युः श्रेष्ठा नेष्टो बुधः शनिः ॥ ८६ ॥ यतः - प्राषाढा धुरि बोजडी, नवमी निरखी जोय । सोमे शुक्रे सुरगुरु का जल बुंधारव होय ॥८७॥ रवि ततो बुध सीमलो, मंगल वृष्टि न होय । दैवयोगे शनि हुइ तो, निश्चय रौरव होय ॥८८॥ आषाढशुक्लैकादश्यां शन्यादित्यकुजैः समम् । सम्पूर्णस्तिविभोगचेत् तदा दुर्भिक्षमादिशेत् ॥ ८६ ॥ आषाढपूर्णिमा विचारः-
'नमिऊ तिलोयरत्रिं जगवल्लह-जलहरं महावीरं' इत्यादि चतुर्मासकुलके---
आषाढपुनिमाए पुष्वासाढा हविज्ज दिनराई । ता बसारि वि मासा खेमसुभिक्षं सुवास च ॥ ६०॥ ग्रह हे हिमाय पुण्णिममृलेणं जाइ पढम बे पुहरा ।
जिससे गौ आदिका क्या प्रयोजन है ॥ ८५ ॥ आषाढके प्रथम पक्षमें दूज और नवमी तिथिको गुरु, सोम या शुक्रवार हो तो श्रेष्ठ, बुध या शनिवार हो तो अशुभ है ॥ ८६ ॥ भाषाढके प्रथमपक्षकी दूज और नवमी सोम, . शुक्र या गुरुवारको हो तो जलवर्षा अच्छी हो ॥८७॥ रविवारको हो तो ताप अधिक पड़े, बुधवार हो तो ठंडी अधिक, मंगलवार हो तो वर्षा न हो और दैवयोगसे शनिवार हो तो निश्चयसे दुष्काल हो ॥८॥ भाषाढ . शुक्ल एकादशीको शनि रवि या मंगल हो तो वर्ष समान हो, यदि इन वार्गे को पूर्ण तिथि भोग हो तो दुर्भिक्ष हो ॥5॥
चतुर्मास कुलकमें कहा है कि- आषाढ पूर्णिमाको दिनरात पूर्वाषाढा नक्षत्र हो तो चारोंही मास क्षेम, सुभिक्ष और मंगलिक हों ॥ ६० ॥ पूनम को पहले दो प्रहर मूल नक्षत्र हो और बाद पूर्वाषाढा नक्षत्र हो तो पहले
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