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(३५६)
मेघमहोदये
आवर्षमध्यम धान्य देशे सर्वत्र कथ्यते ॥९॥ अनं विना यदा रम्यौ वातौ पूर्वोत्तरौ यदा । यत्र यामाचके तत्र मासे वृष्टिहठाद् भवेत् ॥६६॥ आषाढपूर्णिमा षष्टि-घटीमाना यदा भवेत् । मासा छादश धान्यानां सुभिक्षं च सुख जने ॥१०॥ त्रिंशद्धटीभिः षण्मासात् सुखं दुःखं ततः परम् । चातुर्मास्यां पञ्चदश-घटीमाने सुभिक्षता ॥१०॥ न्यूनत्वे तु पञ्चदश-घटीभ्यो दुःखसम्भवः । वासवादल संयोगात् फले न्यूनाधिकाश्रयः ॥१०२॥ कुहूतः षोडशाहे वा आषाच्यां यदि वादलम् । पूर्वाषाढा च नक्षत्रं तदा कालः कणाकुलः ॥१०३|| यन्नानाख्यायते मास-स्तनक्षत्रस्य पूर्णया। योगे पूर्णो समर्घत्वं धान्ये न्यूने तथोनता ॥१०४॥ षाढानक्षत्र हो तो मध्यमफलदायक हो, समस्तदेशों में वर्ष तक मध्यम धान्य हो ॥६८॥ यदि पूर्णिमाको जिस प्रहर में बादल रहित पूर्व और उत्तर दिशाके अच्छे वायु चले तो उस मासमें निश्चयसे वर्षा हो ॥ १९ ॥ यदि अाषाढ पूर्णमा साठ घड़ी हो तो बरह महीने धान्यकी सुनिक्षता रहे और लोकमें सुख हो ॥ १०० ॥ तीस बड़ी हो तो छह महीने सुख और पीछे दुःख हो । पंद्रह घड़ी हो तो चार महीने सुभिक्ष रहे ॥ १०१ ॥ यदि पंद्रह घड़ीसे भी न्यून हो तो दुःख हो । वायु और बादलोंके संयोगसे फल में न्यूनाधिकता होती है ॥ १०२ ॥ अमावास्यासे सोलहवें दिन आषाढ पूर्णिमाको बादल हो और पूर्वाषाढा नक्षत्र भी हो तो दुष्काल हो तथा धान्य की आवुलता हो ॥ १०३ ॥ जिस नक्षत्रसे मास कहा जाता हो उस नक्षत्र पूर्णिमाके दिन पूर्णतया हो तो धान्य सस्ते हों तथा न्यून हो तो न्यूनता जानना ॥ १०४ ॥
"Aho Shrutgyanam"