________________
(३५२)
मेघमहोदय
एकादशी मध्यकालं दुर्भिक्षं द्वादशी भवेत् ॥ ७३ ॥ त्रयोदश्यां रोहिणी चे उत्तमः पवनस्तदा । चतुर्दश्यां राजयुद्धं प्रजा शोकाकुला तदा ॥७४ || अत्र लौकिकमपि दुर्बोधं यथा
+ रोहिणी चंद दिवायरह, एका घडी लहेइ |
समउ समारे भडुली, जोइस कालु करेइ ||७२ || इति । आषाढमासे सित पञ्चमी दिने, ख्यादिवारः क्रमशः फलानि । वृष्टिः सुष्वृष्टितिवृष्टिरूर्ध्व, वातः प्रघातः प्रलयः प्रणाशः ॥७६॥ आषाढशुक्ल नवमी सानुराधा शनौ यदा । क्वचिधान्यार्द्धनिष्पत्तिः क्वचिदर्भिक्षकारिका || ७७ || च्याषाढे प्रथमे पक्षे प्रथमादितिथित्रये । श्रवणं वा धनिष्ठा स्यात् तदान्नसङ्ग्रहः शुभः ॥७८॥
सुभिक्ष, एकादशीको हो तो मध्यम समय, द्वादशीको हो तो दुर्भिक्ष हो || ७३ ॥ त्रयोदशीके दिन रोहिणी हो तो उत्तम पवन चलें, चतुर्दशी के दिन हो तो राजयुद्ध और प्रजा शोक से आकुल हों ॥ ७४ ॥ रोहिणी और चंद्रमाका योगकी एक भी घड़ी रविवार को हो या रोहिणी और सूर्य का योगकी एक भी घड़ी सोमवार को हो तो हे भड्डली ! समयको अच्छा करे ॥ ७५ ॥ भाषाढ शुक्रपञ्चमी के दिन रविवार आदि वार हो तो उस का अनुक्रमसे वर्षा, अच्छी वर्षा, अतिवर्षा, उर्ध्ववायु, प्रवात, प्रलय और विनाश ये फल होते हैं ॥ ७६ ॥ आषाढ शुक्लनत्रमी शनिवारको अनुराधानक्षत्र होतो कहीं धान्यकी थोड़ी प्राप्ति और कहीं दुर्भिक्ष हों || ७७ || आषाढके प्रथमपक्ष में प्रतिपदा आदि तीन तिथियों में श्रवण या घनीष्ठानक्षत्र आ जाय तो धान्य संग्रह करना शुभ है ||७८ || आषाढ कृष्ण षष्ठीको शनिवार हो तो गेहूँ ग्रहण
+टी-रोहिण्यां चन्द्रे प्राप्ते दिवाकरे रविवारे घटिका एकाप्याषाढे श्रेष्ठा इत्यर्थो यद्वा रोहिण्यां सूर्ये प्राप्ते चन्द्रवारे एका घटिका इति दुर्गममिदम् ।
" Aho Shrutgyanam"