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तिथिफलकथनम्
+ अक्षयाख्यतृतीयायां सुभिक्षायैव रोहिणी। कृत्तिका मध्यमं वर्षे दुर्भिक्षं मृगशीर्षतः ॥५५॥ वैशाखे पश्चभौमाश्चेद् भयं सर्वत्र जायते। क्वचिन्न मेघवर्षा स्याद् धान्यं महर्घमादिशेत् ॥५६॥ वैशाखे धवलाष्टम्यां शनिवारो भवेद् यदि । जलशोषं प्रजानाशं छत्रभङ्गस्तदादिशेत ॥५॥ रोहिणी चोत्तरास्तिस्रो मघा वा रेवती भवेत् । नवम्यां मंगले राधे तदा कष्टं महद् भुवि ॥५८॥ वैशाखस्य चतुर्दश्यां वारौ चेद्गरुभार्गवो । तदा निष्पद्यते धान्यं विपुलं पृथिवीतले ॥५६॥ अमावास्यां च वैशाखे रेवत्यां च सुभिक्षता । रोहिणी लोकतुःखाय मध्यमा चाश्विनी स्मृता ॥६॥ भरण्यां व्याधितो लोकः कृत्तिकायां जलेऽल्पता । तो काली वस्तु महँगी और सफेद वस्तु सस्ती हो ॥ ५४ ॥ भक्षपन्तीफा के दिन रोहिणी नक्षत्र हो तो सुभिक्ष, कृत्तिकानक्षत्र हो तो मध्यम वर्ष , और मृगशीर्ष नक्षत्र हो तो दुष्काल जानना ॥५५॥ वैशाख में यदि पांच मंगल हो तो सर्वत्र भय हो, मेघ वर्षा न हो और धान्य महँगे हो ॥५६॥ वैशाख शुक्ल अष्टमी को शनिवार हो तो जलका सूखना, प्रजाका नाश और छत्रभंग कहना ॥ ५७ ॥ वैशाख मासकी नवमी मंगलवार को रोहिणी, तीनों उत्तरा, मघा या रेवती नक्षत्र हो तो भूमिपर बड़ा कष्ट हो ॥ ५८॥ वैशाख चतुर्दशीके दिन गुरुवार या शुक्रवार हो तो पृथ्वी पर बहुत धान्य उत्पन्न हो ॥५६॥ वैशाख की अमावस को रेवती नक्षत्र हो तो सुभिक्ष, रोहिणी हो तो लोगों को दुःख, अश्विनी हो तो मध्यम हो ॥६० ॥ भरणी हो तो + टीजी पाखा रोहिणी नहि, पोस अमावस नहि मूल।
जाश्रावण राखी नहि, तो माणस मलसीधूल ॥
"Aho Shrutgyanam"