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तिथिफलकथनम्
सप्तस्थाप्यस्तदकाच शलभा मूषकाः शुकाः ॥४२।। हेमतानं स्वचक्रं च परचक्रमितीतयः ।
अतिवृष्टिरनावृष्टिः क्वचिदाद्यमिदं वयम् ॥४३॥ मेघजीकृतग्रन्थेतिथि नक्षत्र अरु जोगथी, घटिका करि एकत्र । बीसे भागे जे रहे, विश्वा ते गणि मित्र! ॥४४॥ अथ चैत्रमास :-~प्रकृतम्- चैत्रे चेदष्टमीमध्ये बुधोऽथवा भवेत् कुजः। विरूपं वर्षे जानीहि नदीतीरे गृहं कुरु ॥४५॥ चैत्रस्य शुक्लपञ्चम्यां रोहिण्यां यदि दृश्यते । सानं नभस्तदादेश्या गर्भस्य परिपूर्णता ॥४६॥ द्वितीये दिवसे प्राप्ते चैत्रे वायुश्च सर्वतः । न च मेघाः प्रदृश्यन्ते अनावृष्टिन संशयः ॥४७॥ पौर्णमास्यां यदा स्वाति-विद्युन्मेघसमन्वितः । निर्दोषमपि पूर्वर्वे गर्भो गलितमादिशेत् ॥४८॥ मूषक, शुक ॥ ४२ ॥ सोना, तांबा, स्वचक्र, परचक्र, ईति, अतिवृष्टि और अनावृष्टि इन के विंशोपका हो जाते हैं ॥४३॥ मेवजीकृत ग्रन्थ में कहा है कि -- तिथि नक्षत्र और योग इनकी घड़ी इकट्ठी कर वीससे भाग. देना जो शेष बचे वे हे मित्र! विश्वा गिनना ॥४४॥
चैत्र शुक्ल अष्टमी के दिन बुधवार या मंगलवार हो तो वर्षा न हो इसलिये नदीके किनारे ही घर करना पड़े ॥४५॥ चैत्र शुक्ल पंचमी को रोहिणीनक्षत्र हो और उसी दिन आकाश बादलों से आच्छादित हो तो गर्भकी पूर्णता जाननी ॥४६॥ चैत्र शुक्ल द्वितीयाको चारों दिशा के वायु चले और बादल न हो तो अनावृष्टि जानना ॥ ४७ ।। चैत्र पूर्णमासीके दिन यदि स्वातिनक्षत्र हो और बादलों के साथ बिजली भी चमके तो
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