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तिथिफलकथनम्
तुधाविंशोपकानयनं त्वेवं रामविनोदे- . . शाकस्त्रिगुण्यो नगभाजितश्च,
शेष द्विनिघ्नं शरसंयुतं च । लब्धेन शाकं च पुनः प्रकल्ल्य,
पूर्वोक्तवत् स्युः खलु विश्वकाख्यः ॥३३॥ वर्षाथ धान्यं तृणशीततेजो
वायुश्च वृद्धिः क्षयविग्रहौ च । क्षुधादिकानां करणान्तरेण,
विश्वाशयोधेन फलप्रदास्ते ॥३४॥ तत्करणं त्वेवम्शाकं च वेदगुणितं सप्तभिर्भागमाहरेत् । शेष द्विघ्नं त्रिभिर्युक्तं प्रोक्तं विश्वांशसंज्ञकम्॥३५॥ क्षुधा तृषा तथा निद्रा आलस्यमुद्यमस्तथा । शान्तिः क्रोधस्तथा दम्भो.लोभो मैथुनमेव च ॥३६॥ ___इष्ट शाक (शक संवत्सर) को ३ से गुणा करके ७ से भाग दो, जो शेष रहे उसको द्विगुणित करके ५ जोड़ दो तो वर्षा के विश्वा हो जाते हैं । पीछे सातका भाग देनेसे जो लब्धि आई है उसिको शाक कल्पना कर के पूर्ववत् विधि से धान्यके विश्वा साधन करें । इसी प्रकार पुनः २ लब्धियोंको शाक कल्पना करके तृण, शीत, तेज, वायु, वृद्धि, क्षय. मौर विग्रह के विश्वा साधन करें । तथा तुधा आदि के विश्वा प्रकारांतर से साधन करें । यह विश्वाओंका बोध फलदायक है ॥३३-३४॥
शकसंवत्सरको चारसे गुणा कर सात से भाग देना, जो शेष बचे उसको दोसे गुणा कर इसमें तीन जोड़ देना तो तेरह भावोंके विश्वा हो जाते हैं ॥३५॥ क्षुबा, तृषा, निद्रा, आलस्य, उद्यम, शान्ति, क्रोध, दम्भ, लोभ, मैथुन ॥३६॥ रसनिपत्ति, फलनिष्पत्ति, और उत्साह ये लोगों
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