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तिथिफलकथनम्
(३४३)
योशप्रमिताः शेराः पल्लिका वा भवन्ति । यहा पश्चम्या घटिकास्त्रिभिर्भाज्या यल्लब्धं तदेकीनं तावत्यः पलिकाः स्फन्दकस्य लभ्या इति । क्वचिनु-कार्तिके शुक्ल पञ्चम्यां देश विशाष्टभास्कराः ।
नृपा कलीच रख्यादेर्वारा ज्ञेया हि पल्लिकाः ।।२।। दैवयोगाच्छनिवार स्तदा दुर्भिक्षमादिशेत् । . . महामुद्रिकृया लभ्याएक्रया+धान्यपल्लिका ॥२३॥ मतान्तरे-लभ्यानि धान्यमानानि महामुद्रिकयैकया। * रवी साईवयं सोमे पश्चमानं द्वयं कुजे ॥२४॥ बुधे त्रीणि च चत्वारि गुरौ सार्दानि तान्यथ । शुक्रे शनी च दुर्भिक्षं पञ्चम्यां कार्तिकोज्ज्वले ॥२५॥ विक्रमाद वत्सरस्याङ्क त्रिगुणे पंच मीलिते। के तृतीयांशमें एक टा देने से जो शेष बचे उसके तुल्य पलिका अन्न प्रतिफदियाया विके । कार्तिक शुक्र पंचमी के दिन रविवार आदि जो वार हो उस वार के अनुसार दश, बीश, आठ, बारह, सोलह और सोलह पल्लिका धान्य जानना ॥ २२ ॥ यदि दैवयोगमे शनिवार हो तो दुर्भिक्ष जानना, एक महामुद्रिकांसे एक पल्लिका तुल्य धान्य मिले ॥ २३ ॥ प्रकारान्तरे से कात्तिक शुक्ल पंचमी के दिन रविवधर हो तो एक महामुद्रिकासे ढाई पल्लिका तुल्य धान मिले । सोमबार हो तो पांच, मंगलवार हो तो दो ॥ २४ ॥ बुध हो तो तीन, गुरुवार हो. तो साढ़े चार पलिका महामुद्रिकासे मिले । यदि शुक्र श्री अनिबार हो तो दुर्भिक्ष जानना ॥२५॥ :: विक्रम संवत्सग्के अंकको तीन गुणा करके पांच मिलाना, पीछे सात
+टी-क्वचित्तिोऽपि च चतस्रो वा इति बहुवचनात् प्राप्य.। .
*लोपि-रवि मंगल चारि मण, सोम पंच वुध तीन । जीव कलि दोइ मण, शनि दुर्भिक्ष समीन ॥ जपुरकीप्रतिमें विशेष है
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