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मेधमहादये
पुनरपि श्रीहीरमरिकृतमेघमालायाम्
कृष्णपक्षे श्रावणस्यै-कादश्यां रोहिणी च भम। यावद्धटीप्रमाणं स्या-द्वान्ये तावदिशोपकाः।१८॥ इत्युक्ल प्राक। तत्र लोकेऽप्याह-श्रावणकिसन एकादशी, जेतीरोहिणी होय।
तेती अधगिणे पायली, होसी निश्चय सोय ॥१६॥ ग्रन्थान्तरे तु-फग्गुण पहिली पडिवया, जेती सयभिस होय तित्तिय पायली परठविण, होसी पडिय लोय ॥२०॥ क्वचित्तु-दीवा वीती पंचमी, जेती घडियां होय । तीने भागे दीजई, सेस भाव सो होय ॥२१॥
अस्यार्थ:-कार्तिकशुक्लपञ्चमी घटिकाप्रमाणाः शेरपादाः पल्लिकायाः पादा वा फदीयानाणकस्य पूर्वस्यां प्रतिशकस्य भवन्ति । केचित् पुनर्बदन्ति- घटिकाप्रमाणात तुर्योशे रूप्यकस्य मणा देशान्तरे फदीयानाणकस्य घटिकाप्रमाणतु.॥ १७॥ श्रावगा कृष्ण एकादशीके दिन रोहिणी नक्षत्र जितनी बडी हो उतना धान्यका विंशोपका जानना ॥ १८ ॥ श्रावण कृष्ण एकादशी को रोहिणी. नक्षत्र जितनी बड़ी हो उससे आधा धास्यझा विंशोपका जानना ॥१६॥ फाल्गुनशुक्र प्रतिपदाके दिन जितनी बड़ी शतभिषानक्षत्र हो उतनी पायली (ढाई शे धान्यका माप विशेष) धान्य बिकें ॥२०॥ कात्तिक शुक्ल पंचमी जितनी घड़ी हो उसको तीनसे भागदेना, जो शेष बचे बह भाव समझना ॥ २१ ॥ कार्तिक शुका पंचमी जितनी बड़ी हो उतना शे'पाद (पाव ) अन्न प्रति फदिया का बिके । अथवा पलिका (ढाई शेर धान्य मापनका, पात्र) का चतुर्थाश प्रमाण अन्न बिकें. दूसरोंका मत है कि - पंचमीकी घड़ियों में ४ से भाग देनमे जो लब्धि मिले उलने मगा धान्य प्रतिम पया को विके। देशान्तरों में उसी. लब्धि तुल्य अन्न प्रति फदियाका शै' या पलिको बिके ऐसे कहते हैं । किानेही आचायों का यह भी गत है कि-पंचगी की पड़ियों
"Aho Shrutgyanam"