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अथ लिथिफलकथननामा नव मोऽधिकारः। अथ तिथिकथयै व्याख्यायते यत्सराणां,
शुभमशुभमशेष भावि भावं विभाव्यः । कथितमपि कथभिन्मासपक्षप्रसङ्गा
दविकलफललाभायावशिष्टं विशिष्टम् ॥१॥ वर्षस्तम्भचतुष्टयमचैत्रे सितप्रतिपदि रेवत्यां बहुलं जलम् । वैशाखशुद्धप्रतिपद्भरण्यां तृणसम्भवः ॥२॥ ज्येष्ठशुक्लपतिपदि मृगे वातः शुभो भवेत् । आषाढशुद्धप्रतिपदादित्ये धान्यसम्भवः ॥३॥ चैत्र शुक्ल तिपदि रवौं वायुर्विशेषतः। झल्पा वर्षों फलं तुच्छ-मल्पं धान्यं प्रजायते ॥४॥ चन्द्रे यहुजलं धान्यं नृणानां च बहूदयः।
आगामी भावोंका विचार कर संवत्सरोंका समस्त शुभाशुभको तिथि कथनरूपसे व्याख्यान करते हैं। मार्स और पक्षकै प्रसंग द्वारा कुछ कहा है किंतु बाकि समस्त फलंका लामके लिये विशेष कहा जाता है ॥१॥
- चैत्र शुक्र प्रतिपदा के दिन रेवतीनक्षेत्र हो तो बहुत जलवर्षा हो । वैशाख शुक्र :प्रतिनदा को भरणीनक्षत्र हो तो तृण की उत्पत्ति हो ॥ २॥. ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदशं को मृगशिग्नक्षेत्र हो तो अच्छा वायु चले । आषाढ. शुक्ल प्रतिपदाको रविवार हो तो धान्यकी उत्पत्ति हो ॥३॥
चैत्र शुक्र प्रतिपदाको रविवार हो तो वायु विशेष चले, वर्षा थोड़ी, फल थोड़ें और धान्यं थोड़े हो ॥ ४ ॥ सोमबार हो तो बर्षा तथा धान्य अधिक हो और मनुष्योंका बहुत उदय हो । मंगलबार हो तो सात प्रकार
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