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मेघनर्मलक्षणम् :
द्रोणः पञ्चनिमिते गर्भे श्रीण्याढकानि पवनेन । षविद्युना नवात्रैः स्तनितेन द्वादश प्रसवे - ॥९२॥ सत्सन्ध्यासंलग्नो वर्षति गर्भस्तु योजनंः स्वेकम् |सर्जित त्रिगुतिं सार्द्धाष्टयोजनी भवेद् विद्युत ॥६३॥ प्रतिसूर्यकेण वर्षत्येकादश योजनानि गर्भस्तुः । सत्परिवेशो द्वादश. समीरणेनापि पञ्चदरा ||१४|| पवनाभ्रवृष्टिविद्युद्गर्जितशीतोष्णरश्मिपरिवेषाः । जलमत्स्येन सहोता दशधा गर्भप्रसवहेतुः ॥९५॥ पबनसलिलविद्युद्गर्जिताम्रान्वितो यः
स भवति बहुतोयः पंचरूपाभ्युपेतः । विसृजति यदि तोयं गर्भकाले च भूरि,
प्रसवसमय मित्या शीकराम्भः करोति ॥ ६६ ॥
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अर्थात् एक २ निनित्तस अभावस सौ याजनक द्धर्द्ध की हानि होकर वर्षा होती है ॥ ६१ ॥ पांच निमित्तत्राले गर्भ एक द्रोण (२०० पल) जल बरसाता है । प्रसवके समय पवन हो तो तीन आडक (१५० - पल) जल बरसाता है। बिजलीके निमितवाले गर्भ छः ग्राहक जल बरसता है । मेघ संयुक्त गर्भ हो त तो नव आक और गर्जना युक्त गर्भ हो तो बारह चाटक जल बरसाता है ॥ ६२ ॥ संध्या युक्त गर्भ एक योजन तक बरसता है । गर्जना युक्त गर्भ तीन योजन तक, बिजली युक्त गर्भ साढे आठ योजन तक बरसता है ॥ ६३ ॥ उल्कापात युक्त गर्भ ग्यारह योजन तक, परिमंडल युक्त बारह योजन और वायु युक्त पंदरह योजन तक बरसता है ॥ ६४ ॥ पवन बादल, वर्षा, बिजली, गर्जना, शीत, उष्ण, किरण, परिवेष और जलमत्स्य, ये दश प्रकार गर्भ प्रसवके कारण हैं ॥६५॥ जो गर्भ पवन, जल, बिजली, गर्जना और बादल इन पांच निमित्तरूपसे युक्त हो तो वह गर्भ बहुत जलदायक होता है । यदि गर्भकाल में बहुत जल बरसे तो प्रसव समय
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