________________
मेधमहोदये
ग्रहणं वृक्षपातायैः सत्यं नश्यति पूर्णिमा ॥७६॥ प्रथमा घटिकाः पञ्च आषाढः पञ्च श्रावणः । पश्च भाद्रपदो मासस्तथा पञ्चाश्विनः पुनः ॥७॥ यत्राभ्राकुलनाडीषु वातौ पूर्वोत्तरौ स्फुटम् । तत्र मासे भवेदृष्टिातैरपि शुभैः शुभा ॥८॥ येषु मासेषु ये दग्धा गर्भाः पौषादिसम्भवाः । तन्मासे पश्चनाडीषु रात्रौ चन्द्रोऽतिनिर्मलः ॥७९॥ पौषादिसम्भवे गर्भे ध्रुवमुत्पातसम्भवः । तेनाषाढीदिवारात्रौ द्रष्टव्या वृष्टिहेतवे ॥८॥ यद्याषाढयामहोरात्रमत्रैर्वातः शुभैर्युतम् । तदा गर्भाः शुभा ज्ञेयाः शीतकालेऽपि धीमता ॥८१॥ एकमेव दिनं प्रेक्ष्यं वर्षज्ञानाय धीधनैः ।
क्षय होता है । ७६ ॥ पूर्णिमा की प्रथम पांच घड़ी आषाढ, दूसरी पांच घड़ी श्रावण, तीसरी पांच घड़ी माद्रपद और चौथी पांच घड़ी आश्विन महीना समझना ॥ ७७ ॥ इन में जो घड़ी में बादल हो तथा पूर्व और उत्ता का वायु स्पष्टतया चले तो उस महीने में वर्षा होती है, शुभ वायु चले तो शुभ जानना ।। ७८ ।। पौष आदि महीनों में उत्पन्न हुए गर्भ जिन महीनों में नष्ट हो, उस महीने की पांच घड़ी में चंद्रमा बहुत निर्मल रहे ॥ ७६ ॥ तो पौषादि मास में उत्पन्न हुए गर्भ में निश्चय कर के उत्पात होता है । इस लिये आषाढपूर्णिमा को वर्षा के लिये दिनरात देखना चाहिये ॥ ८० ॥ यदि आषाढ पूर्णिमा दिनरात बादल और अच्छे वायु से युक्त हो तो विद्वानों को शीत काल में भी वर्षा के गर्भ शुभ जानना ॥ ८१ ॥ यह एक ही दिन वर्षा जानने के लिये बुद्धिमानों को देखना चाहिये । इस दिन आठों ही प्रहर बादल और शुभ वायु हो तो शुभ होता
"Aho Shrutgyanam"