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शनैश्चर वारफल्म्
मर्याणि । 'इत्येतद् गौतमस्वामि' इत्यादि ॥६॥ तुलाराशौ यदा सौरिः सुभिक्षं स्थाचराचरे। प्रजानां सुखसौभाग्यं धनं धान्यं च सम्पदः ॥१॥
बंगालदेशे विग्रहस्तत्रैन प्रजापीडा, रोगबहुलता, कार्तिके महाजननये कष्टं बहुलं, बंगाले उत्पातः, छत्रभङ्गः, अ. राशिभोगात् परमुत्पात:, दक्षिणदिशि उपद्रवः, गोधूमचकचोखा (चावल) मारूंगी कांगुणी उडिद एते महर्घाः, ज्येष्ठमासाद् विक्रये द्विगुणो लामा,अन्ये सर्वे देशाः सुभिक्षवन्तः सुस्थाः। 'इत्येद् गौतमस्वामि' इत्यादि ॥७॥.....
वृश्चिके यदा शनिस्तदा हस्तिनागपुरे तद्देशे वैराटदेशे च विग्रहः, मालपदमेदपाटवागडगुर्जरसौराष्ट्र उत्तरार्द्धदेशेषु कटकचालकः, अन्नाल्लाभः, गोधूमकार्पासमसूरान्नतिलकापडादिव्यापारे लाभः, मासनवकात् परमुपद्रवः राजराणाम्लेमें परस्पर विरोध, राजभय, पृथ्वी में किञ्चिद् उत्पातादि अशुभ हो, गुड भाव सम, धान्यभाव तेज, अन्न का भय, महावी,तीन वारगिक वस्तु सस्ती ॥६॥
जब तुलाराशिका शनि हो तब जगत्में सुभिक्ष, प्रजाको सुख सौभाग्य और धन धान्यादि संपदा हो, बगाल में विग्रह प्रजापीडा, रोग अधिक , कार्तिक में ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य को कष्ट , उत्पात , छत्रभंग, राश्य भोगसे पीछे उत्पात, दक्षिण दिशामें उपद्रव, गेहूँ चना, चावल मारंगी कांगुल और ऊर्द ये तेजभाव हों, ज्येष्ठ मासमें बेचनेसे दुना लाभ, अन्य सब देश मुभिक्षवाले और शान्त हो ॥ ७ ॥
- जब वृश्चिकराशिका शनि हो तब हस्तिनापुर और विराट देश में विप्रह, मालवा मेदपाट वागड़ गुजरात सोरठ और उत्तरार्द्ध देशमें सैना का उपद्रव, अनाजसे लाभ, गेहूँ कपास मसूर अन्न तिल और कपडा आदिका व्यापार में लाभ, नव मास पीछे उपद्रव, राजा राणा और म्लेच्छोंका परस्पर
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