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(२३४)
मेघमहोदये
चैत्रे च श्रावणे मासे भवेद् यथर्कपश्चकम् । दुर्भिक्षं तत्र जानीयात् छत्रनाशो न संशयः ॥ १६ ॥ मङ्गले म्रियते राजा प्रजावृद्धिस्तु भार्गवे । बुधे रसक्षयो भूम्यां दुर्भिक्षं तु शनैश्वरे ॥ १७॥ लोकेऽपि - पांच शनिश्चर पांच रवि, पांचे मङ्गल होय । चकि चहोडे मेदिनी, जीवे विरलो कोय ॥ १८ ॥ मासाद्य दिवसे सोम-सुतवारो यदा भवेत् । धान्यं मह श्रीन् मासान् भाविवर्षेऽपि दुःखकृत् ॥ १६ ॥ यतः - बुधश्चेत् प्रथमं वारः सर्वमासाद्यवासरे ।
ततः परं त्रिभिर्मासै मह राजविड्वरः ||२०|| पञ्चायोगे वैशाखे वृष्टिर्गर्भविनाशिनी । पञ्चभौमे भयं वहे षृष्टिरोधाय कुत्रचित् ॥२१॥ प्रतिपत् सर्वमासेषु बुधे दुर्भिक्षकारिणी |
दुर्भिक्ष तथा छत्रभंग जानना इसमें संशय नहीं ॥ १६ ॥ पांच मंगल हो तो राजा का मरा हो, पांच शुक्र हो तो प्रजाकी वृद्धि हो, पांच बुध हो तो पृथ्वीमें रस का क्षय हो, पांच शनैश्वर हो तो दुष्काल हो ॥ १७॥ लोकभाषा में भी कहा है कि-पांच शनैश्वर, पांच रवि और पांच मंगल हों तो भयंकर युद्ध हो ||१८|| जिस महीने का पहला दिन बुधवारसे प्रारंभ हो तो सीन महीना धान्य महँगा रहें और अगला वर्ष भी दुःख कारक हो ।। १६ ।। महीने का प्रारंभ में प्रथम बुधवार हो तो उस मास से तीन मास तक धान्य महँगा रहें और राजमें उपद्रव हों || २० || वैशाख मास में पांच रविवार हो तो वर्षा और गर्भका विनाश हों, पांच मंगल हो तो अमिका भय तथा कहीं वर्षा का भी रोध ( रूकावट ) हों ॥ २१ ॥ बुधवार की पडवा सब: महीनों में दुर्भिक्ष करने वाली है, और विशेष कर यदि ज्येष्ठ मास में हो तो
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