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मेघमहोदये
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तदा भूवतुरो मासान् भवेज्जलसमाकुला ॥ २३८ ॥ श्रावण पहिली पंचमी, जो वरसे सखि मेह | चार मास नीर्झर झरे, एम भणे सहदेव || २३९॥ मतान्तरे पुनः
श्रावण अथवा भद्दवइ, पंचमी जइ वरसेय । ईति उपद्रव चालवो, अणचित होसी तेय ॥ २४०॥ (कृष्णपंचमी विषयं वा ) श्रावण शुक्ल सप्तम्या-मस्तं याते दिवाकरे । न वर्षति यदा मेघो जलाशां मुञ्च सर्वथा ॥ २४१ ॥ अष्टम्यां श्रावण शुक्ले प्रातर्वार्दलडम्बरम् | रविराच्छादितस्तेन पृथिव्यैकार्णवा भवेत् ॥ २४२॥ | मेघैराच्छादितश्चन्द्रः पूर्णायां समुदीयते । तदा स्वस्थं जगत् सर्व राज्यसौख्यं घनो महान् ॥ २४३ || श्रावणे कृष्णपक्षे वा पूर्वाभाद्रपदासु च । चतुर्थ्यां मेघवृष्टिचेत् तदा मेघमहोदयः ॥ २४४॥
तो चार मास पृथ्वी जलसे पूर्ण रहे ॥ २३८ ॥ सहदेव दैवज्ञने भी कहा है कि- श्रावणकी प्रथम पंचमीको वर्षा हो तो चार मास वर्षा हो ॥ २३६ ॥ मतान्तरसे - श्रावण अथवा भाद्रपद की कृष्ण पंचमी के दिन वर्षा हो तो
कस्मात् ईतिका उपद्रव हो ॥ २४० ॥ श्रावण शुक्र सप्तमीको सूर्यास्त के समय वर्षा न हो तो जलकी आशा सर्वथा छोड़ देना उचित है ॥२४९॥ श्रावण शुक्ल अष्टमीके दिन प्रातः काल में बादलों का आडंबर हो, सूर्य आच्छादित रहे तो पृथ्वी पर अधिक वर्षा हो ॥ २४२ ॥ श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा बादलों से आच्छादित उदय हो तो समस्त जगत् सुखी, राज्य संबंधी सुख और महावर्षा हो ॥ २४३ ॥ श्राकृष्ण चतुर्थी के दिन पूर्वाभाद्रपद - नक्षत्र में वर्षा हो तो मेत्रका उदय जानना ॥२४४ ॥ श्रावण शुक्ल चतुर्दशी,
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