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मेघमहोदये उदये तु सहस्त्रांशु-निर्मलो यदि दृश्यते ॥२२५॥ मध्याहे वृष्टिरूपं स्थात् सूर्यस्यास्तङ्गमे तथा ।
अग्रे तोयं न पश्येत बर्जयित्वा महानदीम् ॥२२६॥ लोकेतु-प्रासाही अमावसी, जइ नवि बरसे मेह। तो किम बूजे मारुत्रा, वरसत नावे छह ॥२२७॥ चतुथ्यों तु सितापाढे विद्युद्वर्षाश्च गर्जितम् । तदा जलं समुद्र स्यात् पुस्तके बा अदृश्यते ॥२२८॥ आषाख्यां प्रथमे यामे यादले न सुभिक्षता । मासमेकं जलं धान्यं स्तोकं लोके महाभयम् ॥२२॥ धान्यस्वल्पं बहुजलं वादेले प्रहरदये। तुल्यं धान्यतृणं याम-चतुष्टये सवार्दलैः ॥२३०॥ यामषटुके ग्रीष्मधान्यं न किञ्चिदपिजायते॥इत्यााामासः। श्रावणमासफलम् -
श्रावणस्यादिमे पक्षेऽश्चिन्यां वादलकृष्टयः । निर्मल उदय हो याने सूर्योदयके समय आकाश स्वच्छ हो ॥ २२५।। और मध्याह्नमें तथा सूर्यास्तमें वृष्टिरूप याने वर्षा कारक बादल हो तो नदी को छोड़कर दूसरे स्थान में जल देखने में नहीं आवे || २२६ ॥ लोकमें भी कहा है कि-आषाढ की अमावास्या के दिन यदि वर्षा न हो तो अविच्छिन्न वर्षा हो ॥ २२७ ॥ आषाढ शुक्ल चतुर्थी के दिन बिजली, गर्जना और वर्षा हो तो जल समुद्रमें या पुस्तकमें ही दीखे जाय ॥२२८॥ आषाढ पूर्णिमा के प्रथम प्रहरमें बादल हो तो सुभिक्ष नहीं होता, केवल एक महीना जल बरसे, धान्य थोड़े हो और लोकमें बड़ा भय हो ॥२२६॥ दो प्रहर बादल होतो वर्षा अधिक हो और धान्य थोड़े हो । चार प्रहर बादल हो तो धान्य तृण तुल्य हो याने सस्ते हो । छः प्रहर बादल हो तो ग्रीष्मऋतुके धान्य कुछ भी न हो ।। २३० ।। इति आधाहमासफलम् ।।
"Aho Shrutgyanam"