________________
मेघगर्भलक्षणम्
(३२९)
अथ तात्कालिकगर्भलक्षणम्--- चतुर्थी पञ्चमी षष्ठी ह्यमावास्या च सप्तमी । आषाढकृष्ण तिथयः सद्यो मेघाय लक्षणे ॥६६॥ भ्रेषु पञ्चवर्णाः स्युः पश्चिमाभिमुखी गतिः । पूर्ववातः पुनर्मेघा वर्षालक्षणमीदृशम् ||५०॥ प्राषाढ पूर्णाविगमाद् यावदायाति पञ्चमी । तावद्दिनेषु मध्याह्ने सन्ध्यायां मेघलक्षणे ॥७१॥ सप्तमी दशमी चैकादशी श्रावणकृष्गगा । मेघचिन्हेन सन्ध्यायां त्रिरात्राद् वृष्टिकारिणी ॥७२॥ अमावास्यां श्रावणस्य चित्रादिनेऽथवा सिते । सद्य उत्पद्यते गर्भ स्तद्दिने दुर्दिनादिता ॥७३॥ पूर्वस्यां वादलं धूम्रं सूर्याऽस्ते पीतकृष्णता । उत्तरस्यां मेघमाला प्रभाते विमला दिशः ॥७४॥
आषाढ कृभ्णपक्ष की चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, अमावस और सप्तमी ये तिथि शीघ्र ही मेघ बरसाती है ॥ ६६ ॥ आकाशमें पंच वर्णवाले बादल पश्चिमाभिमुख जा रहे हों और पूर्वदिशाका वायु चलता हो तो यह वर्षाका लक्षण समझना चाहिये ॥ ७० ॥ आषाढ पूर्णिमाके बाद पंचमी तक इन दिनोंनें मध्याह्न समय और संध्या समय मेघके लक्षण हो तो शीघ्र ही वर्षा होती है ॥ ७१ ॥ श्रावण कृष्णपक्ष की सप्तमी दशमी और एकादशीको संध्या समय में के लक्षण हो तो तीन रातमें वर्षा हो ॥ ७२ ॥ श्रावणकी अमावस को या शुक्रपक्ष में चित्रानक्षत्र के दिन दुर्दिन हो तो शीघ्र ही गर्भ उत्पन्न होता है ॥ ७३ ॥ पूर्वदिशा में धूम्रवर्णवाले बादल सूर्यास्त के समय पीले या १८ म वर्णवाले हो जाय, उत्तर दिशा में मेव हो, प्रात काल में दिशा स्वच्छ रहे और मध्याह्न समय अधिक गरमी हो तो ये मेघ के लक्षण जानना; यदि ऐसे लक्षण हो तो उसी दिन बांधीरात में प्रजा को
संतुष्टकारक मच्छी
કર
"Aho Shrutgyanam"