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राजादिकफलम्
शुक्ला चतुर्दशी पूर्णा चतुर्थी पञ्चमी तथा । सप्तमी चेच्छ्रावणस्य वृष्टियुक्ता शुभं तदा ॥ २४५ ॥ कर्कटो यदि भिद्येत सिंहो गच्छत्यभिन्नकः । तदा धान्यस्य निष्पत्ति-जयते पृथिवीतले || २४६ || यदुक्तम-मुह भिन्ना पंचायणह, कक्कह भिन्नि पुट्टि । तो जाणिज्जइ भडुली, मासम्भन्तर बुद्धि ॥ २४७॥ श्रावण शुक्ल सप्तम्यां स्वातियोगे जलं यदा । प्रजानन्दः सुखं राज्ये बहु भोगान्विता मही ॥ २४८ ॥ एकादश्यां नभः कृष्णे यदि वर्षा मनागपि । तदा वर्ष शुभं भावि जायते नात्र संशयः ॥ २४६ ॥ नभश्चतुर्दशी राका चतुर्थी पञ्चमी तथा ।
सप्तमी वृष्टियुक्ता चेद् वर्षे शुभं न चान्यथा ॥ २५० ॥
भाद्रमासफलम्
भाद्रमासे द्वितीयायां यदि चन्द्रो न दृश्यते ।
(३०१)
पूर्णिमा, चतुर्थी, पंचमी और सप्तमी इन दिनों में वर्षा हो तो वर्ष शुभदायक होता है || २४५ || यदि कर्कसंक्रांति के दिन वर्षा हो और सिहसंक्रांति के दिन वर्णन हो तो पृथ्वी पर धान्य बहुत उत्पन्न हो ॥ २४६ ॥ कहा है कि- सिंह संक्रांतिकी आदि में और कर्कसंक्रांति के अंत में वर्षा होती है मडली! एक मासके भीतर वर्षा हो ॥ २४७॥ श्रावण शुक्र सप्तमीको स्वाति योग में जल बरसे तो प्रजाको आनन्द, राज्य में सुख और अनेक भोगों से युक्त पृथ्वी हो ॥ २४८ ॥ श्रावण कृष्ण एकादशी को यदि थोड़ी भी वर्षा हो तो अगला वर्ष शुभ हो इसमे संशय नहीं ॥ २४६ ॥ श्रावण मास की चौदश, पूर्णिमा, चतुर्थी, पंचमी तथा सप्तमी के दिन वर्षा हो तो वर्ष अच्छा हो अन्यथा नहीं ॥ २५० ॥ इति श्रावणमासफलम् ॥
भाद्रमास में द्वितीया के दिन यदि चंद्रमा न दीखे तो सम्पूर्ण प्रकार से वर्षा
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