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मेत्रमहोदयेतदा सम्पूर्णवर्षा स्या-दन्ननिष्पत्तिरुत्तमा ॥२५१॥ . भाद्रे च शुक्लपञ्चम्यां जलं दत्ते न चेद् घनः । दैवकोपात् तदा ज्ञेयो सज्जनोऽपि च दुर्जनः ॥२५२॥ यद्यगस्तेरुदयने वर्षा हर्षाय जायते । सर्वधान्यस्य निष्पत्ति-न चेद् भिक्षापि दुर्लभा ॥२३॥ सप्तम्यां भाद्रमासस्य न वर्षा न च गर्जितम् ।। विद्युछिद्योतने नैव देवः कालस्य नाशकः ॥२५४॥ नवम्यां भाद्रमासस्य वृष्टि कालमादिशेत् । एकादश्यां तु तस्यैव घनो धान्यसमर्घदः ॥२०॥ भाद्रपदे दशम्यां चेन्निर्मलं गगनं यदा । मुद्रा माषाश्च चवला निष्पद्यन्ते घना जने ॥२५॥ सिंहेऽर्कदिवसे वृष्टि-न शुभाय नृणां स्मृता। दैवाज्जाते घने पश्चाद-वृष्टिर्दिनद्वयान्तरे ॥२५॥ तदा तद्दषणं नास्ति मासमेकं प्रवर्षति । अच्छी हो और धान्यकी प्राप्ति उत्तम हो । २५१॥ भाद्रशुक्ल पंचमी को यदि बादल न बरसे तो दैवकोपसे जानिये कि सजन भी दुर्जन हो जाय ॥ २५२ ।। यदि अगस्तिके उदय होने में वर्षा हो तो अच्छी है, सब प्रकार के धान्य की प्राप्ति हो, यदि वर्षा नहो तो भिक्षा भी न मिले||२५३॥ भाद्रमासकी सप्तमी के दिन वर्षा न हो, गर्जना न हो और विजली भी न चमके तो दैव कालका विद्यातक जानना ॥ २५४ ॥ भाद्रभास की नवमी के दिन वर्षा बरसे तो दुष्काल हो और एकादशी के दिन वर्षा हो तो धान्य सस्ते हों ॥२५॥ यदि भाद्रमासकी दशमी के दिन आकाश निर्मल हो तो मूंग, उड़द, चौला अधिक उत्पन्न हों और वर्षा अच्छी हो ॥ २५६ ॥ सिंहसंक्रान्ति के दिन वर्षा हो तो मनुष्यों के लिये अशुभ होता है और उसके पीछे दो दिन बाद वर्षा हो तो ॥२५७॥ उसका दोष नहीं रहता, जिससे एकमास वर्षा होती
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