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मेघगर्भलक्षणम्
काती पारसी मेहा दीसे, निश्चय बरसे मिगसिरसीसइ । पांचमी मेहा चमके दामणि, तोवरसे सघलोई श्रावणि।१०॥ वराहस्तु प्राह-- केचिदन्ति कार्तिक शुक्लान्तमतीत्य गर्भदिवसाः स्युः। न तु तन्मतं यहूनां गर्गादीनां मतं वक्ष्ये ॥११॥ मार्गशिरसितपक्षे प्रतिपत्प्रभृतिक्षपाकरे षाढाम । पूर्वा वा समुपगते गर्भाणां लक्षणं ज्ञेयम् ॥१२॥ यनक्षत्रमुपगते गर्भश्चन्द्र भवेत् स चन्द्रवशात् । पश्चनवते दिनशते तत्रैव प्रसवमायाति ॥१३॥ मेघमालायां तुवारस्तुर्यस्तृतीयं भं तिथि: सा याऽस्तिगर्भिणी। गर्भपातं विना मेघ-स्तत्तत्काले प्रजायते ॥१४॥ दशप्रकाराः प्रागुक्ता गर्भाः शीत सम्भवाः । निश्चय से वर्षा हो और पंचमी के दिन मेघ हो या बिजली चम्के तो पूर्ण श्रावणमासमें वर्षा हो ॥१०॥ कोई कहते हैं कि कार्तिक शुक्लपक्षको लांघ कर गर्भके दिन होते हैं, परंतु ऐसा बहुतोंका मत नहीं है इसलिये बहुतसे गर्गादि ऋषियोंका मत कहता हूँ ॥ ११ ॥ मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में प्रतिपदा प्रादि जिस दिन चंद्रमा पूर्वाषाढा नक्षत्र पर होता है, उसी दिन से गर्भ का लक्षण जानना चाहिये ॥१२॥ जिस नक्षत्र पर चन्द्रमा हो उस दिन जो मेघ का गर्भ उत्पन्न होता है वह चन्द्रमा के वश से माना जाता है। यह चन्द्रमाके वशसे उत्पन्न हुआ गर्भ १६५ दिनमें प्रसवता (वर्षा करता) है ॥१३॥
जिस तिथि को चौथा वार और तीसरा नक्षत्र हो उस तिथिको वर्षा के गर्भ उत्पन्न होते हैं, वह स्थिर हो कर उस २ कालमें वर्षा होती है। १४ ॥ शीतऋतुमें उत्पन्न होनेवाले दश प्रकारके गर्भ पहले कहे हैं, वे
* टी-मृगशीर्षशब्दन मृगशीर्षमर्कभोगनक्षत्रं तत्समये वृष्टिरित्ययः ।
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