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मेघमहापये
भाषा श्वेतपक्षे तु अष्टम्या स्वातिभे तथा । त्रिरात्रं मेघवृष्टया स्याजलैरेकार्णवा मही ॥८॥ दशम्यादित्रये मार्गे कृष्णे चामावसीतियो। चित्रास्वातिविशाखामु समाते गर्भलक्षणे ॥३९॥ प्राषाढ शुक्लपक्षान्त-स्तिथौ तस्यां घनोदयः । तस्मिन्नेव च नक्षत्रे जायते नात्र संशयः ॥४०॥ पौषमासे कृष्णपक्षे ऋक्षं शतभिषम् यदा। इत्यादिश्लोक दशकं प्रागुक्तामह भाव्यते ॥४१॥ सप्तम्यादित्रये पौषे कृष्णे गर्भस्य लक्षणात् । श्रावणे शुक्लसप्तम्यां स्वातौ स्याद् वृष्टये ध्रुवम् ॥४२॥ प्रयोदशीत्रये कृष्णे विद्युन्मेधैश्च गर्भिते । श्रावणे पूर्णिमायां स्याद् वृष्टिः सर्वत्र मण्डले ॥४३॥ माधे कृष्गनवम्यां चेदित्युक्तं प्राक। 'फाल्गुने शुक्लसप्तम्यां कृत्तिकाऋक्षसङ्गमे । शुक्ररक्षमें अष्टमीको तथा स्वाति नक्षत्रको तीन रात्रि मेघवृष्टि हो, पृथ्वी जल से एकाकार हो ॥३८॥ मार्गशिर कृष्ण पक्ष की दशमी भादि तीन तिथि और अमावास्या इन तिथियोंमें तथा चित्रा स्वाति और विशाखा इन नक्षत्रों में गर्भ उत्पन्न हो तो ॥३६॥ आषाढ शुक्लपक्षके अन्तकी उन्हीं तिथिों में और उन्हीं नक्षत्रों में वर्षा हो इसमें संदेह नहीं ॥४०॥
पौष मासका कृष्णपक्षमें यदि शतभिषग्नक्षत्रके दिन वायु बादल हो इत्यादि दश श्लोक पहले कहे हैं वहां से यहां विचार लेना ॥४१॥ पौष कृविपक्षकी सप्तमी आदि तीन तिथिों में गर्भका लक्षण होने से श्रावण शुक्ल सप्तमीको स्वातिनक्षत्रके दिन निश्चय से वर्षा होती है ॥४२॥ पौष कृष्ण त्रयोदशी भादि तीन तिथियों में बिजली और बादल सहित गर्म हो तो श्रावण मासकी पूर्णिमाके दिन सर्वत्र देशमें वर्षा हो ॥४३॥
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