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मेधमहोदये माघादिगर्भः सिद्धान्ते मार्गादिार्तिके मते । कार्तिकान्माघपर्यन्तं लौकिकः कचिदुच्यते ॥४॥ यत:-गरम कहिजे माह लगि, फागुण परायो गन्म। जार गम्भ स्त्री जिसो, होइ सकरमण सम्म ॥५॥ शुक्लायां कार्तिके मासे द्वादश्यां प्रोज्ज्वला निशा। सकला निर्मला चेत् स्यात् तदा पुष्पोदयो दिवः ॥६॥ यावत् स्यात् कार्तिकीपूर्णा-दिनावधिसुनिर्मलम् । दिनानि त्रीणि चत्वारि ऋतुस्नातं तदा नभः ॥७॥ कार्तिके पुष्पनिष्पत्तौ मार्गे स्नानं ततो मतम् । पौषे तुषारवातोर्मि-नित्यं माघो घनान्वितः ॥८॥ लोके तु-काती मासह थारसी, आभा गयण करेय । वीज खिवे घरसे सही, तो चार मास परसेय ॥९॥ अन्यत्रापिपरिपक्क होता है तब कल्याणकारक वर्षा होती है ॥ ३ ॥ सिद्धान्त मेंमात्र मास में, वार्तिककारकके मतसे मार्गशीर्षादि माससे और लौकिक मतसे कार्तिकसे मावमास पर्यन्त गर्भकी उत्पत्ति मानी है ॥४॥ कार्तिक से माघ तक गर्भ पवित्र माना है और फाल्गुनमें जार गर्भ माना है, यह नाम सदश फलदायक है ॥५॥ यदि कार्तिक शुक्ल बारसकी रात्रि समस्त बादल रहित निर्मल हो तो मेघ के गर्भ का पुप्पोदय जानना ॥ ६ ॥ कार्तिक शुक्ल द्वादशीसे पूर्णिमा तक तीन या चार दिन आकाश निर्मल रहे तो ऋतुमती कहना ॥७॥ कार्तिक में रजःकी उत्पत्ति, मार्गशीर्ष में स्नान, पौष में तुषार और वायु हो तथा माघमास बादल सहित हो तो वर्षाके गर्भको पूर्ण प्राप्ति समझना ॥८॥ लोक भाषा में भी कहा है कि- कार्तिक शुक्ल बारस को प्राकाशमें बादल हों, बिजली चमके और वर्षा हो तो चार मास पूर्ण वर्षा हो Hell कार्तिक शुक्ल वारसके दिन मेघ देखने में आवे तो मार्गशीर्षार्क में
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