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राजादिकफलम्
चन्द्रर्मल्ये राज्ञां राज्यपरिक्षयः । अनाच्छादितसूर्यस्यो दयस्त्रा साथ देहिनाम् ॥ ३०९ ॥ -आत्या सत्तमि निरमली, अहमि वादल होय । सो आधा कह करी, आवण पायस होय ||३१०|| माघनवम्यां शुक्ले परिवेषः शशिनि दृश्यतेऽवश्यम् । भाषा वर्षापास्तदान्तरायो भवेदग्रे ॥३१९॥ मावे दशम्यां हि शुभाय वर्षा, तस्यां यदि चेदवर्षा । हर्षाय वर्षातिशयो न कश्चिद्, वर्षागमे मेघमहोदयेन ॥ १२ ॥ माघमासे चतुर्दश्यां प्रहरे यत्र वार्डलम् । वर्षाकाले तत्र मासे न वर्षति पयोधरः ॥ ३१३||
श्रीहीरसरिक्रममेघमालायाम
माहमासे जो हिमपडे, वरसे विज्जु लवेइ । तो जाणिजे डोहला, पुरे पुन करेइ ॥ ३.१४॥
(३११)
॥३०८ ॥ अष्मी के दिन चन्द्रमा निर्मल हो तो राजाओं में विग्रह हो । और सूर्य बादलोंसे आच्छादित उदय हो तो मनुष्यों को मयके लिये हो ३०६ ॥ अथवा सप्तमी निर्मल हो और अष्टमीको बादल हो तो आषाढमें 'वर्षान बरसे और श्रावण में वर्षा हो ॥ ३ ० ॥ माघ शुक्ल नवमीको चंद्रमा का परिवेष मंडल अवश्य हो तो आगे आषाढ मासमें वर्षाका रोध ( रूकावट) हो ॥ ३११ ॥ माघकी दशमीको वर्षा हो और नवमीको वर्षा न हो तो शुभ प्रसन्नता के लिये हो और वर्षाऋतुमें मेघका महा उदय हो इसमें कुछ अतिशयोक्ति नहीं है ॥ ३१२ ॥ माघमासकी चतुर्दशी के दिन जिस प्रहर में जिस दिशा में बादल हो तो वर्षाकालके उस मासमें मेघ नहीं बरसे ॥ ३१३ ॥ श्रीहरिकृत मेघमाला में कहा है कि - माघमास में हिम पडे, वर्षा हो, बिजली चमके तो गर्मका पूर्ण उदय जानना ॥ ३१४ || माघमालकी कृष्णा
" Aho Shrutgyanam"