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तदा मेघस्य गर्भः स्यादयल: सुखसम्पदे ||२७७|| एकादश्यां तथा पयां पूर्णायां दर्शकेऽथवा । न वृष्टिः स्यात् तदाषाढे घनः प्रोक्तो घनाघनः ॥२७८॥ पौषशुक्लचतुर्दश्यां विद्युद्दर्शनमुत्तमम् ।
कृष्णपक्षे तथाषाढे भवेन्मेघमहोदयः ॥ २७९ ॥ विद्युन्मेघो धनुर्मत्स्यो यथेकमपि नो भवेत् । न ऋक्षं वर्षति तदा चिह्नकाले तु वर्षति ॥ २८० ॥ अनेन ज्ञायते सर्व वर्षणं वाप्यवर्षणम् ।
एतद्वै परमं गुह्यं गर्भाधानस्य लक्षणम् ॥ २८९ ॥ विद्युत्संयोगजं चिह्नं न देयं यस्य कस्यचित् । गुरुभक्तस्य बोधाय तथापि किश्चिदुच्यते ॥ २८२ ॥ नभःप्रदीपं प्रच्छाद्य गर्जेदैरावतः न्वितः । विद्युत्कुमारीसंयोगाद् देवेन्द्रो गर्भकारकः ॥ २८३ ॥ उत्तरस्यां यदा विद्युत्-स्वर्णवर्णा प्रदीप्यते ।
वाला मेघका गर्भ स्थिर हो ॥ २७७॥ एकादशी, षष्ठी, पूर्णिमा और अमावास्या के दिन वर्षा न हो तो आषाढ मासमें मेघ बरसे ॥ २७८ ॥ पौष शुरु चतुदशीको बिजली चमके तो अच्छा है, ऐसा हो तो आषाढ कृष्णपक्ष में की प्राप्ति हो ॥२७६॥ त्रिजली, बादल, धनुष्, मत्स्य यदि एक भी चिह्न देखने में न आवे तो आर्द्रादि नक्षत्रों में वर्षा न हो और ये विह हो तो वर्षा हो ॥ २८० ॥। इन चिह्नों से वर्षा होना या नहीं होना ये सब जाने जाते हैं। यहीं मेचका गर्भाधानके लक्षण जो बिजलीसे उत्पन्न हुए हैं वे अत्यन्त गुप्त हैं ये जैसे तैसेको देने योग्य नहीं तो भी गुरुकी भक्तिवाले शिष्योंके बोध के लिये कुछ कहते हैं ॥२८१ ॥ २८२ ॥ आकाशमें बादल सूर्यको छिपाकर गर्जना करे बिजली चमके तो मेघका उदय ( गर्भकारक ) जानना ॥ २८३ ॥ उत्तर दिशामें सुवर्ण रंग की बिजली चमके तो वह बिजली जलदायक हैं,
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