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मेघमहोदये
कृष्णाषाढचतुर्थी चे-दुद्यन्नाच्छादितोः रधिः । सार्द्धत्रिमास्याः प्रान्ते स्यात् तदा मेघमहोदयः ॥२१२|| प्राषाढकृष्णतुर्याया-मस्ते भास्करमण्डले । न वर्षति यदा मेघ-स्तदा कष्टतरं जलम् ।।२१३॥ आषाढ कृष्णपक्षस्या-ष्टम्यां चन्द्रोदयक्षणे । मेधैराच्छादितं व्योम नीरपूर्णा तदा मही ॥२१४॥ यदा लोकः-आसाढाधुरी आठमी, नवमीनी रत्ति जोय।
चांदो वादल छाइओ, तो अन्न सुहँगो होय ॥२१५।। अन्यत्रापि-आसामा धुरेि आठमी,चांदो वादल काय। चार मास वरसालुपा, पाके भांडे राय ॥२१६॥ भाषा नवमी कृष्णा वियुदम्भोदशेखरे । सदा धान्यानि विक्रीय कर्षणे हर्षिती भव ॥२१॥
आषाढकृष्णपक्षे च धनिष्ठा अषणं तथा। यदि आषाढ कृष्ण चतुर्थी के दिन सूर्य उदय काल में वादलों से आच्छा दित हो तो साढ़े तीन मास के अंतमें मेघ का उदय हो ||२१२॥ आषाढ कृष्ण चतुर्थी के दिन सूर्यास्त समयमें यदि वर्षा न हो तो मेघ कठिनता से बरसे ॥२१३॥ भाषाढ कृष्ण अष्टमी के दिन चन्द्रोदय के समय आकाश बादलों से आच्छादित हो तो पृथ्वी जलसे पूर्ण हो ॥२१४। लोकिकभाषामें भी कहा है कि-आषाढ कृष्ण अष्टमी और नवमी की रात्रिमें चन्द्रमा बादलोंसे ढका हुआ हो तो अनाज सस्ते हो ॥ २१५ ।। दूसरे जगह भी कहा है कि-आषाढ कृष्ण अष्मी की रात्रिमें चंद्रमा बादलोंसे ढका हुआ हो तो चार मास वर्षा अच्छी हो और धान्य बहुत उत्पन्न हों ॥ २१६॥ भाषाढ कृष्ण नवमी के दिन बिजलीयुक्त बादल हो तो धान्य को बेचकर कृषिकर्म करने में हर्षित होना चाहिये ॥२१७॥ आषाढ कृष्ण पक्षमें धनिष्टा और श्यल नक्षय के दिन गर्जना या बिजली न हो तो देशभंग हो
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