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वषेराजादिकंफलत
(२१५) यदि ज्येष्ठस्य पञ्चम्यां वृषार्क वृष्टिरुद्भवेत् । पूर्वाषाढादिने वा स्यान्मूले वृष्टिन दोषकृत् ॥२०॥ ज्येष्ठस्य पूर्णिमायां तु मूलं प्रस्रवते यदि । दिनषष्टिं व्यतिक्रम्ये ज्ञेयो मेंघमहादयः ॥२०॥ पादानां संख्यया वृष्टि-वृष्टिगंधं विनिर्दिशेत् । यदा श्रुनिधनिष्ठाहे न भवेजलवर्षणम् ॥२०८।। ज्येष्ठानुज्ज्वलपक्षे तु नक्षत्रे श्रवणादिके । अवर्षणे न वर्षा स्याद् वृष्टौ तु विपुल जलम् ॥२०६॥ चित्रास्वातिविशाखासु वादलानि तदा शुभम् । नाषावृष्टि मल्ये श्रावणे तासु वर्षणम् ॥२१०॥ इति आपाढासंफलम् ... ज्येष्ठे व्यतीते प्रथमा प्रतिपद् घनगर्जितैः। विद्युता वर्षणेनापि द्विमात्यां मेयथाधिका ॥२१॥ यदि ज्येष्ठ मासमें पंचनीके दिन, वृषसंक्रांति के दिन, पूर्वाषाढा और मूल नक्षत्रके दिन वर्षा हो तो दोपकारक नहीं होती ॥२०६॥ जोछ मास की पूर्णिमा के दिन मूलनक्षत्रमें वर्षा हो तो साठ दिनके बाद वर्षा हो।॥२०॥ यदि श्रवणके प्रथम चरणमें वर्षा हो तो आषाढने, द्वितीय चरण में श्रावणम, तृतीय चरण में भाद्रपदमें और चतुर्थ चरण में वृष्टि हो तो आश्विन मासमें वर्षा का अवरोध होता है । इसी प्रकार घनिष्ठा के चरणों में भी जानना चाहिये ॥२०८॥ ज्येष्ठ कृष्णपक्ष में श्रवणादि नक्षत्रों में वर्षा न हो तो आगे वर्षा न बरसे और वर्षा हो तो आगे बहुत वर्षा हो ॥२०६॥ चित्रा स्वाति और विशाखा नक्षत्रके दिन बादल हो तो शुभ, आषाढ में वर्ग न हो और निर्मल हो तो श्रावणमें वर्षा हो ॥२१०॥ इति ज्येष्ठमासफेलम् ।
ज्येष्ठ मास की समाप्ति में पहला प्रतिपदा के दिन मेव गर्जना हो, बिजली चमके और वर्षा हो तो दो मास तक वर्षा न बरसे ॥ २११ ॥
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"Aho Shrutgyanam"