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वर्षराजादिकफलम् गर्जाविद्युद्धिहीनं स्याद् देशभंगस्तदादिशेत् ॥२१८।।
आषाढमासे रोहिण्यां विद्युवर्षा शुभाय सा। स्वातियोगेऽपि चाषाढे. तथैव फलमिष्यते ॥२१९॥
आषाढशुक्ल प्रतिपत्-त्रये वर्षा यदा भवेत् । एको द्वादश च द्रोणाः षोडशापि क्रमाज्जलम् ।।२२०॥ यदुक्तम्-आसाढी पडिवा दिने, जइ घन गरजत वीज । एक द्रोण पाणी पडे, बार द्रोण वली बीज ॥२२॥ द्रोण सोल पाणी पडे, त्रीज तणे दिन जोय । चउथे कण मुहंगो करे, जो धन बरसा होय ॥२२२॥ आषाढे शुक्लपञ्चम्या-दिके तिथि चतुष्टये।। यावन्त्यभ्राणि वर्षासु तावन्मेघमहोदयः ॥२२३॥ शुक्लाषाढनवम्यां च दशम्यां वर्षणं शुभम् । दुर्भिक्षं जायते नूनं वाते वृष्टिं विना कृते. ॥२२४॥
आषाढस्याप्यमावस्यां नवम्यां शुक्लकृष्णयोः । ॥ २१८॥ आपादमासमें रोहिणी नक्षत्रके दिन बिजली या वर्षा हो तो लोक के हितकारी है । यहि फल आषाढमें स्वाति योग होने पर होता है ॥२१॥ आपाढ शुक्ल प्रतिपदा आदि तीन तिथियों में यदि वर्षा हो तो क्रमसे एक, बारह तथा सोलह द्रोण जल बरसे ।। २२० ।। कहा है कि- शुक्ल पडिवा के दिन यदि मेव, गर्जना, बिजली हो तो एक द्रोण; इसी तरह दूज के दिन हो तो बारह द्रोण, और तीज के दिन हो तो सोलह द्रोण पानी बरसे। यदि चोथ के दिन वर्या हो तो धान्य महँगे हो।।२२१-२२२॥ आषाढ शुरू पंचमी आदि चार तिथियों में जितने बादल हों उतने ही वर्षा ऋतुमें मेघका उदय जानना ।। २२३ !! आषाढ शुक्ल नवमी और दशमी को वर्षा होना शुभ है और केवल वायु ही चले और वर्षा न हो तो दुर्भिक्ष होता है ॥२२४॥ भाषांद की अमावास्या और शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की नवमी के दिन सूर्य
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