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अयनमालपत्तदिननिरूपणम्
आर्द्रादौ च विशाखान्तं रविचारेण वर्षति ॥ १०२ ॥ न चैवं शुक्लपक्षाद्यैः पौपेऽपि मूलसङ्गतिः । तया गर्भोदयो ज्ञेय इति वाच्यं वचस्विना ॥ १०३ ॥ | मूलादि गर्भहेतुः स्याद् नक्षत्रं धन्वगे रवौ । सम्बन्धाद् धनुषः पौषे कृष्णादौ चापगो रविः ॥ १०४ ॥ उक्तं मेघमालायाम्
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धन्वराशौ स्थिते सूर्ये मूलाधा गर्भधारणाः । गर्भोदयाद् ध्रुवं वृष्टिः पञ्चोनद्विशनिदिनैः ॥ १०५ ॥ दिनसंख्यानुसाराच्च वर्षत्यत्र न संशयः ।
मूलाद् वर्षति चार्द्राभं पूषायाश्च पुनर्वसुः ॥ १०६ ॥ 'उषाया गर्भतः पुष्यं श्रवणात् सर्पदैवतम् । धनिष्ठाया घावृष्टि-वरुणात् पूर्वफाल्गुनी ॥ १०७॥
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बादलोंसे घेरा हुआ हो याने बादल सहित हो तो आदर्शसे विशाखा तक सूर्यनक्षत्रों में वर्षा हो ॥१०२॥ यहां शुक्ल या कृष्ण पक्षका विचार नहीं करना, पौष मास में जबसे मूल नक्षत्र पर सूर्य हो तब से गर्भकी वृद्धि, समझना ऐसे विद्वान् लोग कहते हैं ॥ १०३ ॥ धनुराशि पर सूर्य आने से मूलादि नक्षत्र गर्भ हेतु होते हैं । पौष मासमें धनुराशि का संबंध से कृष्णादिमें.. धनु: संक्रान्ति आती है ॥ १०४
धनुराशि पर सूर्य आनेसे मूल आदि नक्षत्र गर्भको धारण करनेवाल होते हैं ! गर्भका उदय होनेसे १६५ दिनोंमें निश्चयसे वर्षा होती है । । ५ दिन संख्या तुषार (हीम) गिरने लगे वहां से गिनना, उपरोक्त दिन प अवश्य वर्ष होती है इसमें संशय नहीं । मूल नक्षत्रका गर्भसे आर्द्रा नक्षत्र मैं वर्षा है, ऐसे पूर्वाषाढाका गर्भसे पुनर्वसु ॥ १०६ ॥ उत्तराषाढा की गई ये नक्ष में, श्रवणका गर्भसे आश्लेषा में, धनिष्शका गर्भ से मेधा, शत अश्विनी अपूर्वाफाल्गुनी में वर्षा होती है ॥ १०७॥ पूर्वाभाद्रपदका
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