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अयनमासपक्षदिननिरूपणम्
(२५३) पूर्वाषाढादिपोष्णान्तं गर्भश्चैवं विनश्यति ॥११॥ पञ्चमे पञ्चमे स्थाने गर्भः पतति चाव्ययात् । आप्रवर्षणं देवि ! गर्जने वा कथञ्चन ॥११४॥ सर्वे गर्भाश्च विज्ञेया तत्रैव वृष्टिकारकाः । आर्द्रादिपञ्चके दृष्टे छिद्रं वर्षति माधवः ॥११५॥
न चैवं गर्भनियमः स्यान्मासाष्टकनिमित्तन चतुष्टयम. भीष्टदमिति मेघमालावचनात्, निमित्तरूपगर्भसंख्यायां न्यूनाधिकत्वस्यापि दर्शनातु । यहाहुः श्रीहीरविजयसूरयः स्वमेघमालायाम्
कत्तिय बारसि गम्भा छाया, आसाढ धुरि बरसे भाया । मिगसिर पञ्चमि मेघाडंबर, तोवरसे सघलो संवच्छर ।११६। इतिकृतं प्रसङ्गेन प्रकृतमनुस्त्रियतेपूर्वात्रयं रोहिणी च हस्तश्च प्रतिपदिने । पक्षादौ वारुणं नेष्टं सर्वधान्यमहर्घकृत् ॥११॥
आग्नेयं पौष्णयुगलं मूलश्चेत् प्रतिपदिने । नक्षत्रसे आश्लेषा तक नक्षत्रों में किसी भी दिन वर्षा हो तो क्रमसे पूर्वाषाढा से रेवती नक्षत्र तक के गर्भका विनाश होता है ॥ ११३ ।। पांचवें २ मास में स्विरगर्भ का पात हो जाता है ! कभी आदी में वर्षा हो या गर्जना हो तो गर्भपात होता है ॥ ११ ॥ जहां गर्भ हो वहां सच वृष्टि करनेवाले जानना । आदि पांच नक्षत्रों में वर्षा बासती है ।।११५ ॥ कात्तिकमासकी द्वादशी के दिन गर्भ आच्छादित हो तो आपाट में निश्चयसे वा हो और मार्गशीर्ष पंचमी के दिन भी वर्षाका आडंबर हो तो सम्पूर्ण वर्ष में वर्षा हो ।। ११६॥
पक्षक आदिमें प्रतिपदा के दिन यदि तीनों पूर्वा, रोहिणी, हस्त और, शतभिषा पत्र हो तो सब प्रकार के धान्य तेज हों ।। ११७ ॥ कृत्तिका, रेवती, ...... पौर मूल ये नक्षत्र हों तो समान भाव रहे और बाकी के
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