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वर्षराजाकिफलम्
(२८३) पूर्वालकाले जगतो विपत्ति-र्माध्याहिके त्वल्पफला च पृथ्वी ।। अस्तंगतााबासस्यसम्पत् ,क्षेमंसुभिक्षं स्थिरमर्द्धरात्रौ॥१३१
आर्द्राप्रवेशेयदि भास्करस्य, चन्द्रस्त्रिकोणे यदि केन्द्रगोवा जलाश्रयेसौम्यनिरीक्षितेच, सम्पूर्णसस्या वसुधालदास्यात्।। दिवाळ सस्यनाशाय राघौ सस्यविद्धये। .
अस्तगेऽर्केऽर्द्धरात्रे या समर्घ बहकृष्टयः ॥१३॥ अथ वर्षेशमंत्रिप्रसङ्गाद् वर्षजन्मलग्नं विचार्यते ---- चैत्रमासे पुनः प्राप्ते लोकानां हितहेतवे । मेषसंक्रान्तिवेलायां लग्नं शोध्यं शुभाशुभम् ॥१३४॥ यदा शुभग्रहैदष्टं लग्नं स्यात् तु तदा शुभम् ।। धनधान्यादिसम्पूर्ण सर्व वर्षे शुभावहम् ॥१३॥ भावा द्वादश ते मासाः सौम्याः ऋराः ग्रहाः पुनः। तेषु मासेषु दिशि च फलं ज्ञेयं शुभाशुभम् ॥१३६॥
सूर्य प्रार्द्रा नक्षत्र पर पूर्वाह्नमें प्रवेश हो तो जगत् को दुःख कारक, मध्याह्नमें प्रवेश हो तो पृथ्वी थोड़ा फलदायक हो, दिनास्त के समय प्रवेश हो तो धान्य संपत्ति बहुत हो और अर्द्धरात्रिमें प्रवेश हो तो क्षेन और मुभिक्ष हो ॥ १३१॥ जब सूर्यका आर्द्रा नक्षत्र पर प्रवेश हो उस समय चन्द्रमा त्रिकोण या केन्द्रमें हो, तथा जलचर राशि में हो और शुभग्रह देखते हो तो सम्पूर्ण पृथ्वी धान्यसे पूर्ण हो ॥१३२॥ दिनमें श्राद्रा का प्रवेश हो तो धान्यका विनाश, गत्रिमें प्रवेश हो तो धान्यकी वृद्धि, और अस्त समय अथवा आधीरातमें प्रवेश हो तो अन्न सस्ते हों और वर्षा अच्छी हो ॥१३३ ॥
लोगोंके हित के लिये चैत्रमास में मेषसंक्रान्ति के समय लग्नका शुभाशुभ विचार करें ॥१३४॥ यदि लग्नमें शुभग्रह की दृष्टि हो तो शुभ और धनधान्य से पूर्ण समस्त वर्ष सुखकारी हों ।।१३५॥ बारह भाव है वे बारह मास है, जिसमें सौम्य या क्रूर ग्रह हों उस मास में और उनकी दिशा में शुभा
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