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महोदये
मध्यदेशे राजयुद्धं मासपञ्चकमुद्रसः ॥ १५०॥ कन्यायां सुखिता प्राच्यां घृते महर्घता मता । मञ्जिष्ठादिसमर्घत्वं यावन्मासश्रयं भवेत् ॥ १५१ ॥ मारिर्दक्षिणदेशे स्यात् तथा वहेरुपद्रवः । लोकदुःखं पश्चिमायां विग्रहोऽनमता ॥ १५२ ॥ चतुष्पदसुखं प्राच्या मुदीच्यां राजविग्रहः । मध्यदेशे प्रजाभङ्गः समत्वं घृते पुनः ॥ १५३ ॥ तुलालग्ने मध्यदेशे भङ्गश्च विग्रहः ।
धान्यस्य विक्रयः प्राच्यां छत्रभङ्गमुपद्रवः || १५४ || दुर्भिक्षं बहुलो वायुः स्वल्पमेघप्रघर्षणम् । पश्चिमायां महायुद्धं दंष्ट्रा भयं महर्घता ॥ १५५ ॥ दक्षिणस्यां सुखं लोके दुर्भिक्षं चोत्तरापथे । मासद्वयं पश्चिमायां किञ्चिदुत्पातसम्भवः ॥ १५६ ॥ वृश्चिके पश्चिमे देशे दुर्भिक्षं नवमासिकम् ।
(२८६)
पूर्व अर्थ याने मध्यम प्राप्ति, आगे पांच महीनेके बाद श्रेष्ठ हो, मध्यदेश में पांच महीने राजाओं में युद्ध और देश उजाड हो ॥ १५० ॥ कन्या लग्न में वर्ष प्रवेश हो तो पूर्व में मनुष्य सुखी, घी महँगा और तीन मास तक मँजीठ आदि सस्ते रहें ॥ १५१ ॥ दक्षिण देशमें मारीका रोग तथा अभिका उपद्रव हो और लोक दुःखी हो । पश्चिम में विग्रह हो और धान्य महँगा हों. ॥ १५२ ॥ पूर्वमें पशुओं को सुख, उत्तर में राजविप्रह, मध्यदेशमें प्रजा का नाश, और घी सस्ते हो ॥ १५३॥ तुला लग्नमें वर्ष प्रवेश हो तो मध्यदेश में छत्रभंग और विग्रह हो । पूर्व देशमें धान्य का विक्रय करना, छत्रभंग का उप हो ॥ १५४॥ दुर्भिक्ष हो, बहुत वायु चले और थोड़ी वर्षा हो । पश्चिम बड़ा युद्ध, सर्प आदि दाढवाले जतुओं का भय और अन्नका भाव तेज हो || १५५ || दक्षिणमें लोक सुखी हो, उत्तर में दुर्भिक्ष हो और पश्चिम
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