________________
मेघमहोदये
त्रयोदशी च नवमी पञ्चमी कृष्ण चैत्रगा एतासु विशुद्धर्जा सम्भवी दृष्टिहानिकृत् ॥१७५॥ चैत्रस्य कृष्णण सप्तम्या मच्छन्नं यदा नभः । रक्तवस्तुसमर्घत्वं भवत्येव न संशयः ॥ १७६ ॥ यदुक्तं - अहवा पंचमी नवमी तैरस दिवसम्मि जड़ हवइ गज्जो । ता चत्तारिय मासा होइ न वुद्धि न संदेहो ॥ १७७॥ चैत्रस्य शुक्ला पतिपद द्वितीया वा तृतीयका । चतुर्थी वृष्टियुक्ता चे चातुर्मास्यस्तदा घनः ॥ १७८ ॥ मतान्तरे पुनः
चैत्राद्यप्रतिपन्मेघ - गर्जितं वर्षणं तथा ।
श्रावण भाद्रमासे च तदा वृष्टिर्न जायते ॥ १७९ ॥ लोकोऽप्यत्र साक्षी
गाज बीज आभा नवि होय, अजुआली चैत्रइ धुरि जोय । पूनिमचित्रा हुई प्रतिघणु, दाम द्रोण हुई बमणुं ॥ १८० ॥
(२९०)
१७४ ॥ चैत्र कृष्ण पक्ष की पंचमी नवमी और त्रयोदशी के दिन बिजली गर्जना या बादल हो तो वर्षाकी हानि होती है ॥ १७५ ॥ चैत्रकृष्ण सप्तमी के दिन आकाश बादलोंसे आच्छादित होतो लाल वस्तु सस्ती हो इसमें संदेह नहीं || ७६ ॥ कहा है कि- चैत्र कृष्ण पक्षकी पंचमी नवमी और त्रयोदश दिन मेव गर्जना हो तो चार मास वर्षा न हो इसमें संदेह नहीं || १७७ ॥ चैत्र शुक्ल पक्षकी प्रतिपद, दूज, तीज और चौथ के दिन वर्षा हो तो चौमासा के चारमास वर्षा बरसे ॥ १७८ ॥ मतान्तर से कहा है किचैत्र शुक्ल पक्षको प्रतिपदा के दिन मेघगर्जना तथा वर्षा हो तो श्रावण और भादों में वर्षा न हो ॥ १७६ ॥ लौकिक में भी कहा है कि- चैत्र शुक्र प्रतिपदाके दिन मेव गर्जना बिजली या बादल न हो और पूनमके दिन चित्रा नक्षत्र हो तो दामने दूना दोरा धान्य मिले अर्थात् सस्ते हो ॥ १८०॥ चैत्र
"Aho Shrutgyanam"