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वर्घरानादिकफलम् चतुर्थी चैत्रकृष्णस्य वर्षा दुर्भिक्षकारिणी। पश्वम्यामसिते'चैत्रे न दृष्टं दुर्दिनं शुभम् ॥१७०॥ मतान्तरे पुन:चैत्र कृष्ण द्वितीयादि-पञ्चके जलवर्षणम् । अग्रेजलदरोधाय कथितं पूर्वसरिभिः ॥१७१॥ यंदुक्तं श्रीहीरसूरिपादैःचित्तस्स किसणि पक्खे धीया तीया चउथि पंचमीया। घरसेड पुचवाओ दूरे मेहुम्भवो तासु ॥१७२।। लौकिकमपिचैत्रह छट्टि भडली, नवि वद्दल नवि पाय ! तो नीपजे अन्न सवि, किसी म करजे धाय ॥१७॥ कृष्णपञ्चम्याः परं नैमेल्यं नव-दिनानि यावत् प्रागुक्तम् ।। चत्रस्य कृष्णपञ्चम्यां हस्तनक्षत्रसङ्गमै । न विद्युद्गर्जिताभ्राणि तदा स्याद वस्सरः शुभः ॥१७४॥ प्रबल हो और वर्षा भी हो तो कार्तिकमासमें वर्षा हो ॥ १६६ ।। चैत्रकृष्ण चतुर्थीके दिन वर्षा हो तो दुर्भिक्ष कारक हैं और पंचमीके दिन दुर्दिन अर्थात् वादलोंसे आकाश घिरा हुआ देखने में न मावे तो शुभ होता है ॥ १७०॥ चैत्रकृष्ण द्वितीया आदि पांच दिन में जलवर्षा हो तो भागे वर्षा का रोध (रूकावट) हो ऐसा प्राचीन आचार्योंने कहा है ॥ १७१ ॥ श्रीही बिजयसूरिने कहा है कि-चैत्र कृष्ण पक्षकी दूज; तीज, चौथ और पंचमी के दिन 'वर्षा हो तथा पूर्वका वायु चले तो मेघ का उदय विलंब से हो ॥१७२।। लौकिकमें भी कहते है कि-चैत्र कृष्ण षष्ठी को बादल और वायु न हो तो समस्त धान्य उत्पन्न हों इसमें संशय नहीं ॥१७३॥ चैषकृष्ण पंचमी से नव दिन निर्मलता हो ऐसा पहले कहा है । चैत्रकृष्ण पंचमी के दिन हस्त नमात्र हो, तथा बिजली गर्जना या बादल न हो तो पर्ष शुभ होता है ।
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