________________
(२८२)
मेघमहोदये उत्तरात्रितये वृद्धिः करे सर्वसुखावहम् । मित्रायां चित्रधान्यानि सदा शुभफलं भवेत् ॥१२५॥ स्वाती सस्याभिवृद्धिः स्याद् विशाखारोगनाशनम् ।। मैत्रे सर्वमहीपालाः सन्तुष्टाः सर्वजन्तवः ॥१२६॥ ऐन्द्रे सर्वभयं कुर्यादु मूले सर्वभयावहः । जलः चासियुद्धं स्याद् विश्वभे श्रवणे शुभम् ॥१२॥ वासवः तु धरणी सम्पूर्णफलदायिनि । . शतभे जलसम्भूर्णा पूर्वाभारे तु शोभनम् ॥१२८॥ नृपध्वंस: पौष्णभृक्षे विष्कम्भपञ्चकं शुभम् । सुकर्मा ध्रुववृद्धी च हर्षणः सिद्धिसाधकौ ॥१२९॥ शिवसिद्धौ शुभः शुक्ल ऐन्द्र एते शुभावहाः ।
शेषास्तु मध्यमाः सर्वे स्वमानानुगताः फले ॥१३०॥ श्रा प्रवेशे वेला लग्नम्----- है ॥१२४। तीनों उत्तरा के दिन वृद्धिकारक और मनुष्योंको सुखकर हो, : चित्रामें चित्रविचित्र धान्य हों तथा सर्वदा शुभफलदायक हो ॥१२५।। स्वाति के दिन धान्यकी व द्धि, विशाखाके दिन रोग नाशक, अनुराधाके दिन प्रवेश हो तो समस्त राजाओं तथा समस्त प्राणी संतुष्ट हो ॥१२६। ज्येष्ठा के दिन सब प्रकारके भयदायक, मूलके दिन सब भयदायक, पूर्वाषाढा के दिन बहुत युद्ध हो, श्रवणके दिन शुभ ।। १२७ धनिष्ठाके दिन पृथ्वी सम्पूर्ण फलदायक हो, शतभिषाके दिन जलसे पूर्ण और पूर्वाभाद्रपदाके दिन प्रवेश हो तो शुभ हो ॥ १२८ । और सूर्यका आई नक्षत्रमें रेवतीनक्षत्र के दिन प्रवेश हो तो राजाका विनाश हो ॥ योगफल- विष्कंभ आदि पांच योगके दिन प्रवेश हो तो शुभ है, सुकर्मा, ध्रुघ, दृद्धि, हर्षण, सिद्धि, साधक, शिव, 'सिद्धि, शुभ, शुक्ल और ऐन्द्र ये सब शुभकारक हैं और बाकीके योग अपने नाम सदृश मध्यम फल देनेवाले हैं ॥१२६॥ १३० ।।
"Aho Shrutgyanam"