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वर्षराजादिकफलम्
(२७३) अनितस्कररोगाः स्युनुपे विग्रहदायकाः । हतसस्यजला भौमे वर्षेशे भूः सुदुःखिता ॥६९॥ प्रभूतवायुः सौम्येऽब्दे मध्याः सस्थार्थवृष्टयः । नृपसंक्षोभसम्भूता भूरिलेशभुजा प्रजाः ॥७॥ गुरौ संवत्सरे भूपाः शतधाध्बरशालिनः । सम्पूर्णवृष्टिसस्यार्था नीरोगाः सुखिनो जमाः ॥७९॥ यवगोधूमशालीच-फलपुष्पार्थवृष्टिभिः । सम्पूर्णा निखिला धात्री भृगुपुत्रस्य वत्सरे ॥७२॥ सौराब्दे मध्यमा वृष्टि-रीतिभतिभयं रुजः। सङ्कामो घोरधात्रीशः पलक्षुण्णाखिला धरा ॥७३॥ मन्त्री फलं तत्र वशिष्ठ:------ दिनकृति मन्त्रिणि सततं विचित्रवर्षाणि सर्वसस्पानि । क्षितिपतिकोपो विपुलो विपिनारामाश्च सीदन्ति ॥७॥ अच्छी हो, मनुध्य देवों की स्पा करें ॥६८॥ मंगल हो तो भनि चोर और रोग अधिक हों, राजाओं में विग्रह, पृथ्वी धान्य और जल से रहित हो और दुःखी हो ॥६६॥ बुध वर्षपति हो तो वायु अधिक चले, धन धान्य और वृष्टि मध्यम हो, राजाभोंका क्षोभसे उत्पन्न हुमा बहुत केशको भोगनेवाली प्रजा हों ||७०॥ गुरु वर्षपति हो तो राजा सैंकड़ों यज्ञ करने वाले हों, सम्पूर्ण पृथ्वी धन धान्य और वृष्टिसे पूर्ण हो और मनुष्य रोगरहित सुखी हों ॥७१॥ शुक्र हो तो सम्पूर्ण पृथ्वी जव, गेहूँ, चावल, फल, पुष्य और वर्षा आदिसे पूर्ण हो ॥७२॥ शनि वर्षपति हो तो मध्यम वर्षा, ईतिका भय, रोग का भय और राजाओं का घोर संग्राम हो, समस्त पृथ्वी सैन्यसे दुभित हो ॥७३॥ .. जिस वर्षमें सूर्य मंत्री हो उस वर्षमें निरंतर विचित्र वर्ष हो, सब प्र. कारके धान्यका विनाश, राजाओं अधिक कोपवाले हों, नाग बगीचें और
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