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मेघमहोदये
(२७५)
तुहिनकरे सचिवे भूर्नानाविधसस्यदृष्टिसम्पूर्णा । द्विजसज्जन पशुवृद्धिः काननफलपुष्पजन्तूनाम् ॥७५॥ दहनप्रहरण सञ्चरमरुदामयभीतिरीतिरतुला स्यात् । क्षितितनये सति मन्त्रिणि शोषं समुपैति निम्नभवसस्यम् ।७६ । मन्त्रिणि शशांकतनये प्रभूतवायुर्निरन्तरं वाति । मध्यमफलदा - धरणी विभाति सुरसद शलोकैच ॥७७॥ सचिवे वाचामी धननिचयं च सत्यसम्पूर्णम् । जगदेखिलं जलपूर्ण प्रभूतराज्योत्सवैा युतम् ॥७८॥ उच्चरति ध्वनिरनिशं विप्राणामध्वरे जगत्यखिले । अनिमिषहृदयानन्दं कुर्वच सचिवे सुरारिगुरौ ॥७६॥ मन्दफला निखिलधरा न वापि मुखन्ति वारि वारिधराः । दिनकरतनये सचिवे प्रभया रहितं जगत्सर्वम् ॥८०॥ धान्येशफलम् ----
सूर्ये धान्यपतौ वैर-मनावृष्टिर्भयं तथा ।
जंगल आदिका नाश हो ॥ ७४ ॥ चंद्रमा हो तो अनेक प्रकार के - धान्य हो वृष्टि पूर्ण हो, ब्राह्मण, सज्जन, पशु, फल पुष्प और प्राणियों की वृद्धि हो ॥ ७५ ॥ मंगल हो तो अभिसे आघात, वायु का संचार अधिक, रोगका भय और ईतिका अधिक उपद्रव हो, तथा उत्पन्न होनेवाले धान्य सूख जाय ॥ ७६ ॥ बुध हो तो निरंतर बहुत वायु चले, पृथ्वी मध्यम फलदायक हो, देवताके सदृश लोक शोभा पावें ॥ ७७ ॥ बृहस्पति हो तो धन प्राप्ति च. धिक, समस्त धान्य उत्पन्न हों, समस्त पृथ्वी जलपूर्ण हो और राज्यों में उत्सव हो ॥ ७८ ॥ शुक्र मंत्री हो सो समस्त पृथ्वी में ब्राह्मणों की वाणी देवों के हृदयको मानन्द करनेवाला यज्ञ के विषे निरंतर हो ॥ ७६ ॥ शनि मंत्री हो तो समस्त पृथ्वी मंद फलदायक हो, मेघ वर्षा करे या न भी करे, - समस्त जगत कान्ति होनहो ॥ ८० ॥
"Aho Shrutgyanam"