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(२७२)
मेघमहोदये
जगन्मोहने तु
चैत्रादिमेषादिकुलीरतौली, मृगादिवाराधिपतिः क्रमेण । राजा च मंत्री ह्यथसस्यनाथो, रसाधिपो नीरसनायकश्च ॥४॥
आर्द्रादिनाथो जलनायकश्च, धान्याधिपश्चापदिनादिवारः। गौर्जरमते- यो फाल्गुनान्ते कुहुभुक् स वारो,
राजा भवेद् गौर्जरसंमतोऽयम् ॥६५॥ कश्यपः-- चैत्रशुक्लादिदिवसे स किंस्तुध्नेऽथ बालवे ।
अर्कोदये तु यो वारः सोऽन्दपः परिकीर्तितः ॥६६॥ अथैषां फलानि रामविनोदे, तत्र वर्षराजफलम्---- मेघाः स्वल्पोदका धान्यं स्वल्पं स्वल्पफला द्रुमाः । चौराग्निभूपतिभयं भास्करे भूपतौ सति ॥६७॥ चान्द्रेऽब्दे निखिला गावः प्रभूतपयसोद्धराः। भाति सस्थार्थपानीयं द्युचरस्पर्द्धिमानवैः ॥६॥ पति, रसाधिपति और धान्याधिपति हैं ॥६३॥ जगन्मोहन ग्रन्थमें कहा है कि- चैत्र शुक के अाद्य दिन, मेषसंक्रान्ति, ककसंक्रान्ति, तुलासंक्रान्ति,
और मकरसंक्रान्ति इन दिनों में जो वार हो वे कसे गजा, मंत्री, धान्याधिपति, रसाधिपति और नीरसाधिपति हैं ॥६४॥ आर्किके दिन जो वार हो वह जलाधिपति है, धनुसंक्र.न्तिके दिन जो वार हो वह धान्याधिपति है । गौर्जरमत से तो जो फाल्गुन के अन्त अमावस के दिन जो वार हो वह राजा होता है ॥६५॥ कश्यपऋषि कहते है कि- चैत्र शुक्ल के आदि दिन किंस्तुघ्न या बालव करणमें सूर्योदय के समय जो वार हो वह वर्ष का राजा है ।। ६६ ।। . . जिस वर्ष में वर्षपति सूर्य हो उस वर्ष में वर्षा थोड़ी, धान्य थोड़ें, वृक्षोंमें फल थोड़ें, और चोर अग्नि तथा राजाका भय हो ॥६७॥ चंद्रमा हो तो समस्त गौ बहुत दूध देनेवाली हों, धन धान्य और जल वर्षा बहुत
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