________________
मेबमहोदये
रोगैर्मुक्तं जगत्सर्व भयमुक्ता भवेन्मही । पच्यन्ते सर्वधान्यानि यत्र सस्याधिपः कविः ॥५२॥ अग्निचौराकला पृथ्वी महा व्याधिप्रपीडिता। मृत्युरोगमयं युद्धं वर्षे सस्याधिपे शनौ ॥५२॥ गिरधरानन्दे पुनः सस्याधिरफलम् --~-- वर्षेश्वरश्च भूपो वा सस्येशो वा दिनेश्वरः। तस्मिनन्दे नृपाः क्रूराः खल्पसस्याल्पवृष्टयः ॥५३॥ अब्दपो वा चम्पो वा सस्यपो वा क्षपाकरः। तस्मिन् करोति क्षमा पूर्णी धान्यार्थवृष्टिभिः ॥५४॥ प्रदेश्वरचमूपो वा सस्येशो वा धरासुतः। प्रवृष्टिवाहिचौरेभ्यो भयमुत्पादयत्ययम् ॥५५॥ अन्दाधिपश्चमूपो वा सस्येशो वा शशाङ्कजः । न करोति कलिं कष्ट-मवृष्टिमतिमारुतम् ॥५६॥ चम्पो वाथ सस्येशो वर्षे शो वा गिरांपतिः। रहित हो और पृथ्वी भय रहित हो, तथा सब प्रकार के धान्य उत्पन्न हो . ॥५१॥ शनि सस्याधिपति हो तो अग्नि और चोरोंसे पृथ्वी आकुल हो, महाव्याधि से पीडित हो. मृत्यु और रोगका भय, तथा युद्ध हो ॥५२॥
जिस वर्ष में वर्षपति मंत्री कौर धान्यति सूर्य हो, उस वर्ष में राजा , र स्वभाववाले हों, थोड़ा धान्य और थोड़ी वर्षा हो ॥५३॥ वर्षपति, मंत्री और धान्याधिपति चंद्रमा हो तो उस वर्ष में पृथ्वी धन धान्य और वर्षा से परिपूर्ण हो॥५४॥ वर्षपति मंत्री और धान्याधिपति मंगल होतो. वर्षाका अभाव, अग्नि और चौरोंसे भय उत्पन्न हों ॥ ५५ ॥ वर्षपति मंत्री और धान्याधिपति बुध हो तो कलह कष्ट न हो, बर्षाका अभाव और पवन अधिक चले ॥५६॥ वर्षपति मंत्री और धान्यपति बृहस्पति हो तो भूमि में अधिक या और वर्षा हो ॥५७॥ वर्षपति मंत्री और धान्यपति शुक
"Aho Shrutgyanam"