________________
(२३८)
मेघमहोदये रवावमात्ये भुकिरोगपीडा, देशेषु सर्वत्र चरन्ति तीडाः।रसेषुधान्येषु महर्घतास्या-च्छलानिलोकेसुरा विनाश्याः॥
सुधाकरे भूः सचिवेऽन्नपूर्ण-फलैरसाट्यास्तरवश्व गावः । पुत्रप्रसूति हुला वधूनां, जनेषु वाणी जयिनीमधूनाम् ॥४०॥ निदानतः स्याद्गुरुदेवनिन्दा, भूमावतीसारगदस्य भूमा। धूमाकुलाभूजननेत्ररोगाः, कुजे भवेन्मन्त्रिणि युद्धयोगः।४१॥ राज्ञां सुदृष्टिबहुलान्नवृष्टिासच्छात्रवृद्धिर्धनिनां समृद्धिः। पत्यावतिलेहरतिर्युवत्या,बुधे पुनर्मन्त्रिणि रागसिद्धिः ॥४२॥ मन्त्रित्वमाप्तेसुरमन्त्रिणि स्यात्, प्रजासुसौख्यं धनधान्यवृद्धिः। विवाह मांगल्यकला जनानां, नानारसमयमहोदयःस्यात्। ४३।
जाते कवौत्रिणि गोषुदुग्धं, बहुक्षितौ धान्यसमर्घताच । वृक्षाः फलान्या जनतासु रोगो,भिषकप्रयोगाकचीदीतिभीतिः॥
जिस वर्षों मंत्री सूर्य हो तो पृथ्वीमें रोगपीडा, सर्वत्र देशों टिड्डीका उपद्रव, रस और धान्य महँगे हों, मनुष्योंमें कपटता और देवों का प्रभाव नाश हो ॥३६॥ चंद्रमा मंत्री हो तो पृथ्वी धान्यसे और वृक्ष फलोंसे पूर्ण हों, गौ अधिक प्रसव करें और वधूओंकी वाणी मनुष्योंमें प्रिय हो ॥४०॥ मंगल मंत्री हो तो भूमि पर गुरु और देव की निंदा, अतीसार रोग का उपद्रव, धूम से पृथ्वी आकुल, मनुष्यों को नेत्ररोग की पीडा. और युद्ध का योग हो ॥४१॥ बुध मंत्री हो तो राजा प्रसन्न दृष्टिधाले हो, धान्या और वर्षा अधिक, अच्छे २ शास्त्र और धनी लोगों की समृद्धिकी वृद्धि हों, स्त्री पति से प्रेम करनेवाली हो ॥ ४२ ॥ बृहस्पति मंत्री हो तो प्रजामें सुख, धन धान्यकी वृद्धि, मनुष्यों का विवाह आदि मंगल हो, और अनेक प्रकार के रसोंसे मेघका उदय हो याने अच्छी वर्षा हो ॥४३॥ शुक्र मंत्री हो तो गौ अधिक दूध दें, पृथ्वीमें धान्य सस्ते हों, वृक्षों में फलोंकी अधिकता, मनुष्यों में रोग, वैद्यका प्रयोग चले और कहीं ईतिका भय हे॥४४॥ शनि मंत्री .
"Aho Shrutgyanam"