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वर्षराजादिकफलम्
(२६)मान्यं जनानां व्यवहारनाशः, क्रूरा नृपास्तस्करवहिदुःखम् । गवांविनाशोऽतिमहर्घधान्यं, शनैश्चरे मंत्रिणि राज्ययुद्धम् ॥ सस्याधिपतिफलम्क्वचित् पचन्ति सस्यानि क्वचिन्नश्यन्ति भूतले । व्याधिदुःखं महायुद्धं धान्यानामधिपे रवौ ॥४६।। समर्घ जायते धान्यं सर्वत्र जलवर्षणम् । सर्वधान्यानि जायन्ते यत्र सस्याधिपः शशी ॥४७॥ ईतिभूतं जगत्सर्व व्याधिरोगपीडितम् । महर्घाणि च धान्यानि सस्यानामधिपे कुजे ॥४८॥ सजला वसुगा सर्वा भयनाशः सुखी जनः। चणकादीनि धान्यानि धान्यानामधिपे बुधे ॥४६॥ आनन्दः सर्वलोकानां सुवृष्टिस्तु प्रजायते । निष्पत्तिबहुधान्यानां यत्र सस्याधिपो गुरुः ॥५०॥ हो तो मनुष्यों के व्यवहारका नाश, राजाओं क्रू स्वभाववाले हों, चोर मौर अग्निका दुःख, गौ जाति का विनाश, धान्य मगे हो और राजाओं में युद्ध हो ॥ ४५ ॥
जिस वषमें धान्याधिपति रवि हो तो भूमि पर कहीं धान्य पर्के, कहीं विनाश हों, व्याधि दुःख और महायुद्ध हों ॥ ४६॥ चंद्रमा सस्याधिपति हो तो धान्य सा हों, सब जगह जलवर्षा हो और सब प्रकार के धान्य उत्पन्न हो ॥४७॥ मंगल सस्याधि ति हो तो सब जगत् ईति का उपद्रव से और व्याधि-रोगसे पीडित हो, तथा भान्य मँहगे हों ॥४८॥ बुध धान्याधिपति हो तो समस्त पृथ्वी जलवाली याने वर्षा अच्छी हो, भयका नाश और मनुष्य सुखी हों, चर्ने आदि धान्य अधिक हों ॥ ४६ ।। बृहस्पति धान्याधिपति हो तो सब लोगों में आनंद हो, वर्षा अच्छी हो और धान्य प्राप्ति अधिक हो ॥५०॥ शुक्र धान्याधिपति हो तो समस्त जगत् रोग
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